________________
मकना, यह बात वे जानते हैं। वे उपकारकभाव से दुनिया को ऐसा मार्ग बनाने जाते है जिसने उनका परोक्ष ज्ञान हो सके । यह नाग है-'स्यादवाद' ।
जो ज्ञान तीर्थकरो को प्रत्यक्ष रूप में प्राप्त हुना, वह जान दुनिया के ननुप्गे को, मुझे, आपको, जिन्हें चाहिये उन सवको द्रव्य, क्षेत्र, काल, भात्र आदि की अपेक्षा ने गेग्यतानुसार माप्त हो सकता है । 'स्याबाद' के द्वारा यह ज्ञान प्रय प्राप्त किया जा सकता है । यह स्यावाद का विशेष महत्व है। कहा गया है कि.___ "केवलनानी प्रात्मा प्रत्यक्ष स्वरूप में जो जानते है, वह सब 'स्याद्वाद' परोक्ष बलप में जानता है। केवलजान और स्गवाद दोनो सर्वनत्त्व प्रकाशक ई, एक प्रत्यक्ष त्प में और दुसरा परोक्ष रूप में । अर्थात् स्याबाद ने तत्व का जो परोक्ष ज्ञान होता है वह केवनान ने प्रत्यक्ष होता है।" __ यह वात नर्वया सन्य है । अन्य दर्जनो मे जानी माने जाने वाले महागयो ने जो बात अपने अनुभव के अनुसार
नुभव करके लिखी है, उसे मानने के लिए केवल श्रद्धा के सिवाय और कोई माधन नहीं है। केवलनानी भगवन्तो ने अपने प्रत्यक्ष अनुभवों के द्वारा देखे हुए जिन तत्त्वो का लाभबोध-जगत को दिया है, उसे बुद्धिगम्य रीति से, परोक्षतः नममने के लिए उन्होंने जगत को एक बास्त्र की-एक वैज्ञानिक प्रवृतिती -नी भेट दी है। यह पद्धनि है 'स्यावाद' । म उसे देखने, जानने और समझने के लिये सब लोगों को किसी नंका या नकोच के विना आमत्रण दे सकते हैं। निस्सह, श्रद्धा से बुद्धि को विभूपिन करके ही जाना होगा।