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चीख भी उसगे से नहीं निकलती । सुख दुख के सभी सवेदन गरीर से नहीं, बल्कि प्रात्मा से सम्बन्ध रखते है-जड शरीर मे रहे हुए चेतन यात्मा गे--यह बात समझने और समझ कर स्वीकार करने के लिए यह एक उदाहरण ही काफी है । इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए अनेक उदाहण दिये जा सकते हैं, परन्तु अाज तो यह वान गर्व-स्वीकृत होने के कारण अधिक विस्तार करना अनावश्यक है।
आत्मा चेतन्य स्वरूप है और गरीर जास्वरूप है। कर्म भी पुद्गल होने के कारण, गरीर के पुदगलो की तरह 'जड' है । ये जड कर्म-पुद्गल शरीर में रहे हुए चेतन यात्मा को वाँध कर, घेर कर बैठे है । ये कर्म-पुद्गल-कर्म आत्मा की बाजी विगाडने का-उन्नटने का कार्य अनादिकाल से करते आये है।
यह एक अच्छा तमाशा है। हमारी विन्ली, हमसे ही म्याऊँ' जैसी यह बात है । अग्रेजी मे 'Frankenstein' 'फेकेन्स्टीन' एक शब्द है । एक कल्पित कथा मे इस नाम के एक यन्त्र मानव का पान आता है । एक महान् वैज्ञानिक ने एक यत्र मानव (Robot) बनाया । उसने विनाश करने की अद्भुत शक्ति से इस यन्त्र मानव को सुसज्जित किया। उसने अपने सभी शत्रुनो को धराशायी करने की ग्राशा से यह यत्र-सचालित मानव-मूर्ति वनाई थी। परन्तु वाद मे इसका यह अजाम हुआ कि अपने ही बनाये हुए उस यत्रमानव को अपने वश मे रखने का कार्य उस वैज्ञानिक के लिए असभव हो गया। अन्त मे उस यत्र मानव ने अपने निर्माता उक्त वैज्ञानिक को ही मार डाला ।