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प्रयोग करते है, और फिर वे इस निर्णय पर पहुँचते है कि वह ' है ' । जब विज्ञान के विद्यार्थी अपनी प्रयोगशाला (Laboratory मे प्रयोग —— Practicals करते है, तब वे जो भिन्न भिन्न पद्धतियाँ प्राजमाते है उनका एक नमूना यह रहा
" एक विद्यार्थी हाथ मे 'कागज' लेता है । फिर वह यह मान कर कि 'यह कागज नही है' प्रयोग शुरु करता है । विश्लेषण (Analysis ) करते करते जब यह प्रयोग पूरा होता है तब उसका निर्णय ( conclusion ) यह प्राता है कि 'यह कागज है ।' प्रारम्भ में 'नही है' ऐसी धारणा ( assumption) करते है | प्रयोग के अन्त मे वे ऐसा निश्चय करते है कि यह धारणा गलत थी । यहाँ जो 'कागज' की बात लिखी है सो केवल उदाहरण के लिए ही ।
इस तरह 'है' या 'नही है' ऐसा मानकर प्रयोग करने वाला कुछ न कुछ परिणाम तो लाता ही है । निष्फलता भी एक परिणाम है, र परम पुरुषार्थियो के लिए यह सफलता की जननी ( पुरोगामी) है |
अत हम अवश्य चाहेगे कि वैज्ञानिक सशोधन जारी रहे । केवल हमारी यह इच्छा मानव कल्याण को भावना के अनुरूप होगी, क्या यह स्पष्टता करने की कोई आवश्यकता है ?
इस विश्व में जो ग्ररूपी, अतीन्द्रिय, सूक्ष्म ( Invisible ) पदार्थ है, उन सबकी जानकारी भौतिक प्रयोगशालाओ द्वारा प्राप्त होगी या नही, यह तो एक प्रश्न ही है । इसके लिए तो 'प्रात्मिक अनुभव' को छोडकर और कोई प्रयोगशाला नही है । परन्तु जो रूपी - इन्द्रियगोचर (Visible ) पदार्थ है, उनका प्रयोगात्मक ज्ञान भौतिक प्रयोगशालाओ द्वारा प्राप्त करने के