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________________ २७६ श्यकता ही न रहे-मानव जीवन का यही अन्तिम आध्यात्मिक लक्ष्य-Final spiritual goal है । हम जिस ज्ञान की खोज करना चाहते है उस ज्ञान को पाने का हेतु भी आत्मा की इस अवस्था को सिद्ध करना ही होना चाहिए। - इसके बदले हम भ्रमो मे ही भटके रहते है । हमारे चारो भोर जो सच्ची समझ रही हुई है उसको ओर हमारा ध्यान नही जाता। हम इन्द्रियो और वासना की पकड मे ऐसे जकडे गये है कि जो सच्चा नहीं है उसे सच्चा मानते है और जो सच्चा है सो हमे नही सुहाता। जैन तत्त्ववेत्तानो के बताये हुए जान दे जो भेद हमने यहाँ देखे उन पर भली भाँति विचार करने पर मालूम होगा कि ये ज्ञान के प्रकार बुद्धिगम्य एव वैज्ञानिक है । इसमे अधश्रद्धा की या ऐकान्तिक बात नहीं है । वैज्ञानिक प्रयोगशाला (Scientific laboratory) मे जिस तरह प्रयोग होते है. उसी तरह इसके प्रयोग भी हम अपने आत्मा की प्रयोगशाला में कर सकते है, और इसकी सच्चाई सार्थकता और सिद्धिदायकता अनुभव कर सकते है। ज्ञानविषयक इस विवेचन से हम यह निष्कर्ष निकालते है कि सम्यक् ( सच्चा ) ज्ञान 'अनुभव ज्ञान है । स्तर के भेद से यह ज्ञान परोक्ष हो चाहे प्रत्यक्ष, पर यह तो हमे स्वीकार करना ही होगा कि ज्ञान अर्थात् 'अनुभव' है।' इसके बदले हम इस संसार मे क्या देखते है ? यदि हम पारमार्थिक (आध्यात्मिक) क्षेत्र में से साव्यवहारिक क्षेत्र मे आ कर देखेगे तो यहाँ भी हमे ज्ञान और अनुभव का भेद समझ मे पाएगा।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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