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है वहाँ अभियुक्त था ही नहीं, और जिस नमय खून हुत्रा बताया जाता है उस समय वह घोत्री तालाव पर नही पर बोरीवली ने था- इस तरह के नगीन और विश्वास-पात्र प्रमाण उन्होंने कोर्ट में पेश किये है | यह सब देख कर, पर्याप्त सोच विचार करने के बाद ज्यूरी यह निर्णय ( Verdict ) देती है कि अभियुक्त निर्दोष है।' न्यागावोग महोदय को पर्याप्त सोच विचार के बाद प्रतीत होता है कि यह निर्णय उचित है और इसीलिए वे भी अपना यह फैसला ( Judgement ) सुना देते है कि 'अभियुक्त निर्दोष है और उसे छोड दिया जाता है ।'
'अभियुक्त मुक्त हो जाता है, वैरिस्टर चक्रवर्ती को सफलता मिलती है । यह स्यादवाद पद्धति की विजय है ।
इस सारे केन मे हमने देखा कि न्यायायोग नहोदय बिल्कुल निप्पक्ष, तटस्य, तथा अपने पद के गोरव के प्रति सचेत रहे हैं । उनमें मध्यस्य वृत्ति, अति निपुण बुद्धि और विवेकपूर्णगांभीर्य सभी गुण थे जो स्यादवाद सिद्धान्त का सफल अनुसरण करने के लिए आवश्यक हैं । इसीलिए वे न्याययुक्त निर्णय दे सके | जैन तत्त्ववेत्तात्रों ने स्यादवाद को समझने के लिये इन गुरणों की विशेष आवश्यक्ता मानी है ।
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पहले कहा जा चुका है कि स्यादवाद सत्य और न्याय का पक्षपाती है । उपर्युक्त केस में वैरिस्टर चक्रवर्ती ने अभियुक्त का बचाव स्याद्वाद शैली में प्रस्तुत किया था, यह सच है । परन्तु इस तरह प्रस्तुत करने में उन्होने ऐकान्तिक कथन किया होता तो वह स्याद्वाद शैली न कहलाती । इसी तरह माननीय न्यायाबीग महोदय ने जो निर्णय दिया उसमे स्यादुवाद की