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मे इसी तरह सगीन प्रतिपादन हना है, परन्तु ज्यूरी का निर्णय पाना अभी बाकी है । इसलिए निर्णय के विषय मे न्यायाधीश साहब ने आखिरी फैसला नही किया है । अत 'अभियुक्त दोपी है, 'अभियुक्त दोपी नहीं है, और निर्णय
के विषय मे कुछ नहीं कहा जा सकता। ये सातो भिन्न भिन्न दृष्टिकोण आदरणीय न्यायाधीश के सामने पेश हुए है, नोट किये गये है। ये सातो मिलकर जो एक सपूर्ण चित्र प्रस्तुत करते है, वह अब उनके सामने है । प्रत्येक अभिप्राय को पृथक् पृथक् और सातो को एकत्रित करके अादरणीय न्यायाधीश केस के विषय मे अपनी वात ज्यूरी के सदस्यो के सामने पेश करते है। न्यायाधीश महोदय ज्यूरी का मार्गदर्शन अवश्य करते है, परन्तु निर्णय नहीं देते। यह बात समझने योग्य है। न्यायाधीश को जो फैसला करना है, जो निर्णय देना है, उसके विषय मे वे पहले से कोई निश्चय नही कर लेते । ज्यूरी का निर्णय आने के बाद ही वे अपना क्या मतव्य या अभिप्राय है सो सोचेगे और उसके बाद ही निर्णय देगे।
अव, ज्यूरी के सदस्य एक अलग कमरे मे जाकर सारे केस पर विचार करते है, परस्पर विचारविनिमय करते है । वैरिस्टर चक्रवर्ती ने अपना केस स्यावाद शैली को ध्यान मे रखकर तथा स्थापित कायदे-कानून अच्छी तरह समझ-समझा कर पेग किया है । वे ज्यूरी के सदस्यो पर इस तरह का दृढ प्रभाव डाल सके है कि क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षाएँ देखते हुए अभियुक्त निर्दोष ही है । जिस स्थान पर खून हुआ