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स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करता है कि परिस्थिति को देखते हुए बैरिस्टर साहब की उदारता उनके लिए नहीं है, फिर भी कुछ कहा नहीं जा सकता । इस उत्तर से चतुर्भुज भाई को एक नवीन दृष्टि मिलती है जिससे उन्हे वैरिस्टर के पास जाने
और अपना अभीष्ट प्राप्त करने के लिए अपना केस ऐसे ढङ्ग से सावधानी पूर्वक पेश करने का मार्ग दर्शन प्राप्त होता है जिससे कोई गलतफहमी न हो।
यह सब समझ लेने के बाद चतुर्भुज भाई वैरिस्टर चक्रवर्ती के पास जाने के लिए खडे हो जाते है । जाते जाते वे पूछते है, "पूरी सावधानी से बात करूँ तो बैरिस्टर साहब की उदारता का लाभ क्या मुझे अवश्य मिलेगा?"
इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हमे सातवे भग का सहारा लेना पडेगा। हम उन्हे झूठी अाशा बँधाना नहीं चाहते, उन्हे निराश करना भी नहीं चाहते, इसके उपरान्त चतुर्भुज भाई का यह उलाहना भी सुनना नहीं चाहते कि 'आपने मुझे गलत राह दिखाई, मुझे परिस्थिति का स्पष्ट चित्र नही दिया।' अतएव हम उनसे कहेगे कि___'वैरिस्टर साहव उदार है, उदार नहीं है, और अवक्तव्य है ।' प्रवक्तव्य है अर्थात् कुछ नहीं कहा जा सकता, शब्दो मे वर्णन नही हो सकता । इस जवाब से हम बैरिस्टर साहब की उदारता के स्व-चतुष्टय तथा पर-चतुष्टय की भिन्न भिन्न अपेक्षामो तथा इन दोनो की एकत्र अपेक्षा को ध्यान मे रख कर चतुर्भुज भाई को एक नवीन स्वतन्त्र दृष्टि देते है ।
इस प्रकार हमने श्री चतुर्भुज भाई को सातो भगो की भिन्न-भिन्न दृष्टि से और भिन्न-भिन्न अपेक्षाओ के अनुसार जो