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२२८ पूछे कि क्या यहाँ पानी है तो उसका क्या उत्तर हो सकता है ? ऐसा स्पष्ट जवाव, जिसमे से असदिग्ध समझ प्राप्त हो सके, केवल इस वाक्य के द्वारा ही दिया जा सकता है-'है पर कुछ नहीं कहा जा सकता।'
कुआँ खोद कर उसमे से पानी निकालने के वाद कोई नहीं पूछेगा "क्या यहाँ पानी है ? इसी तरह, जब यह पाँचवी कसौटी कहती है कि 'है और प्रवक्तव्य है' तो यह भी एक स्पष्ट और निश्चित बात है।
यह पाँचवाँ कथन भी सापेक्ष है और अन्य अपेक्षायो से होने वाली अन्य निश्चित वातो का अस्वीकार नहीं करता। यह पहले के चारो से एक विशिष्ट और नई बात हमारे सामने पेश करता है। एक बार फिर समझ ले कि स्वचतुष्टय की अपेक्षा से 'है' यह निश्चित वात करने के बाद, यह पाँचवाँ भग स्व-पर-चतुष्टयद्वय को ध्यान में रख कर एक साथ वर्णन नही हो सकता-ऐसी दूसरी निश्चित वात भी उसके ( अस्तित्व के ) साथ ही कहता है ।
इस तरह घडा और फूलदान-दोनो के बारे मे, हम इस पांचवी कसौटी के द्वारा बताये गये निर्णय से यह स्पष्ट कथन करते है कि 'है और अवक्तव्य है।'
अब हम अपनी छठी जिज्ञासा का उत्तर पाने के लिए छठे भग की ओर बढते है।
कसौटी ६-स्यान्नास्त्येव स्यादवक्तव्यश्चैव घटः ।
सधियाँ छोडने पर यह वाक्य निम्नानुसार पढा जाएगास्यात्+न+अस्ति+एव,स्यात्+अवक्तव्य +च+एव घट. ।