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हो सके । ' हमे अपनी समझने की शक्ति की उत्कटता का असली उपयोग यहाँ करना है । पहले मे कहा कि 'है', दूसरे मे कहा कि 'नही' तीसरे मे हमे ज्ञात हुआ है कि 'है और नही है ।' ये तीनो वाते तो हमारे दिमाग मे आ गई परन्तु यह ' प्रवक्तव्य' क्या है ? घडे का वर्णन क्यो नही हो सकता
इस बात को समझना कोई कठिन नही है । हमे अपनी रोजाना जिन्दगी में इस प्रकार का शब्दप्रयोग कई वार होता दिखाई देता है ।
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उदाहरणार्थ - किसी के अत्यधिक उपकार के भार से दवा हुआ कोई व्यक्ति मुंह बोल कर या लिखित रूप से ऐसा शब्दप्रयोग करता है, "मेरे पास अपनी भावना का पूर्णतया वर्णन करने के लिए शब्द नही है ।" इसी तरह किसी अत्यधिक वढ जाती है तव कुछ है, "मेरे दिल मे क्या क्या है,
भी प्रकार की भावना जव लोग ऐसा कहते भी सुने गये उसका वर्णन करने में असमर्थ हूँ ।
अग्रेजी भाषा मे इस आशय की शब्दावलि देखने को मिलती है - I have no words to expless — I am unable to express my gratitude ! मेरे पास इसे व्यक्त करने के लिए शब्द नही है — में अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने मे असमर्थ हूँ ।
इस प्रकार के वाक्यो का प्रयोग करने वाले लोगो को अपनी भावनाओ की जानकारी तो होती है । वे नासमझ तो नही होते, यह बात तो सभी समझ सकेंगे, परन्तु उनकी बात व्यक्त करने के लिए निश्चित शब्द नही मिलते, इसलिए वे इस प्रकार के वाक्य बोलते है ।