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जैसे घडे के विषय में वैसे ही फूलदान के विषय मे भी इस तीसरे भग के अनुसार निश्चित हो गया कि 'फूलदान है
और नहीं है।' अब यह पूर्णतया समझ मे आगया होगा कि इस तीसरे कथन मे किसी प्रकार की अनिश्चितता या सदिग्धता नहीं है।
यह तीसरी कसौटी वस्तु का तीसरा स्वरूप समझने के लिए है । यह कथन सापेक्ष है । जो लोग इस बात को अच्छी तरह समझ लेगे उन्हे इसकी समझ के विषय मे कोई भ्रान्ति नहीं रहेगी।
इस प्रकार घडा और फूलदान है और नही है इस बात की समझ प्राप्त करके आगे बढने से पहले पुन इतना याद कर ले कि इस तीसरी निश्चित वात मे भी 'स्यात्' शब्द होने से स्वचतुष्टय और परचतुष्टय की मर्यादाएँ और अपेक्षाएँ क्रमश स्वस्थान मे है ही। यह शब्द अपने ढग से तृतीय भग मे भो अन्य अपेक्षायो का गभित सकेत तो करता ही है ।
फिर भी इस तीसरी वात मे कुछ भी सशय या अनिश्चय नही है । इसके विपरीत, यह हमे वस्तु को समझने की तीसरी दृष्टि' देती है।
इन तीन निर्णयो के बाद फिर चौथी जिज्ञासा प्रकट होती है जो हमे चौथे भग की ओर ले जाती है।
४ कसौटी-स्यादवक्तव्य एव घट ।
सधि अलग करने पर यह वाक्य यो पढा जाएगास्यात+अवक्तव्य +एव घट । इसका अर्थ होता है --'कथचित् घडा अवक्तव्य ही है।'
अवक्तव्य अर्थात् 'जिसका वाणी या शब्दो द्वारा वर्णन ।