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२२० यह बात पहले और दूसरे भग के योगफल जैसी प्रतीत होती है, परन्तु यह योगफल नहीं है । यह एक 'तीसरी नश्चित बात है। ___ यहाँ हम पहले समझी हुई एक बात को याद कर ले। 'परस्पर विरोधी फिर भी सम्बन्धित अनेक गुण धर्म एक ही वस्तु मे निहित है ।' यह बात पहले कही जा चुकी है । ____ यह तीसरा भग यहाँ एक ऐसी बात कहता है जो पहले
और दूसरे भग मे नही कही गई। वस्तु के जो भिन्न भिन्न स्वरूप होते है वे अलग अलग स्वरूपो के समूह या योगफल की तरह नही होते, स्वतन्त्र होते हैं, यह वात हम अनुभव से जानते है । कदाचित् योगफल हो तो भी उसका स्वरूप अलग ही होता है।
किन्ही दो रगो के मेल से जव तीसरा रंग बनता है तव हम उसे 'दो रगो के मिश्रण' के नाम से न पुकार कर तीसरे ही नाम से पुकारते है। यह तो सव के अनुभव की बात है । इसी तरह स्वचतुष्टय की अपेक्षा से 'है' और परचतुष्टय की अपेक्षा से 'नहीं है'-इन दोनो को एकत्रित करके जब हम 'है और नही हैं ऐसी तीसरी बात कहते है तब वह योगफल न रह कर तीसरी एक निश्चित वात बन जाती है । 'है' का अस्तित्व और 'नही है' का नास्तित्व-इन दोनो के स्थान पर 'है और नही है ऐसे तीसरे निर्णय का अस्तित्व यहाँ प्रकट होता है।
इस तथ्य को भलीभॉति समझने के लिए 'शराव' का 'उदाहरण' लेते है। हमे गराव के विपय मे भिन्न भिन्न मतव्य मिलेगे।