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इन दो प्रकार की जिज्ञासाम्रो को मतुष्ट करने पर हमे फिर तोमरी जिज्ञासा जागृत होती है कि, 'तब क्या बढा उभय स्वर प है ।' उनका उत्तर देने के लिए तीसरा भग तैयार ही खड़ा है । उने हाथ में लेने के पूर्व सुविधा के लिए हम अपेक्षा से सम्बन्धित अपने शब्दप्रयोगों का एक 'राग्रह' बना ले । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव-इन चार शब्दो के बदले हम 'चतुष्टय' शब्द प्रयुक्त करेंगे। उनमे अावश्यकतानुसार 'स्व'
और 'पर' जोट कर हम स्वचतुष्टय' तथा 'परचतुष्टय' गब्दो का प्रयोग करेंगे। अब देखिये तीसरी जिज्ञासा का उत्तर यह है
फसोटी ३-स्यादस्तिनारित चैव घट । अब, उसको सघियो का विग्रह करे
स्यात्+अस्ति+न+अस्ति+च+एव घटः । इस का अर्थ हुा-कचित् घटा है हो और कथाचित् नहीं ही है।'
हमारी वृद्धि की असली कमीटी अब यहां से शुरु होती है।
प्रथम दो भगो मे हमे ज्ञात हुआ कि घडा है और घटा नही है । उग वक्त तो हमने समझ लिया कि ठीक है भाई, घडा जहां है वहाँ है और जहां नही है वहाँ नही है । परन्तु इस तीसरे भग मे तो 'है और नहीं हैं ऐसी एक सयुक्त बात कही गई है। यह फिर क्या है ? है, तो है, नहीं है, तो नही है । तब फिर यहाँ 'है और नहीं है' ऐसी सदिग्ध बात करने की क्या आवश्यकता है ?
सबसे पहले तो हम यह समझ ले कि इस ज्ञानयुक्त मनोरजन सी प्रतीत होने वाली बात में कोई अनिश्चितता या सदिग्धता नहीं है।