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यह निर्णय करने में उक्त 'स्यात्' गव्द के प्रयोग से घडे मे तथा फूलदान मे रहा हुआ अपेक्षाभाव सूचित हुआ, और 'एव' शब्द से इस कथन मे निश्चित भाव आया । इस रीति से निर्णय करने मे हम उचित मार्ग पर (On ught path) है ।
अर्थात् इस प्रथम कसौटो ने हमे एक निर्णय प्रदान किया कि "घडा है।"
कसौटी २-स्यान्नास्त्येव घट । सधियो का विग्रह करने पर यह वाक्य यो पढा जाएगा
स्यात्+न+अस्ति+एव घट । इसका अर्थ हुआ'कथंचित् घडा नही ही है।' ___ऊपर पहली कसौटी मे स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल, और स्व-भाव की अपेक्षा से 'घडा है ही' ऐसा निर्णय करने के बाद हम विचार करने लगे कि, 'तव क्या घडा नही भी है सही । ऐसा अन्य भी कोई निर्णय लिया जा सकता है क्या ?' दूसरे प्रकार की जिज्ञासा के द्वारा जाँचने पर इस दूसरे भग से हमे यह ज्ञात हा कि घडा जो है सो 'स्वद्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा से है। परन्तु वही घडा परद्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा से नही है । अर्थात् पूर्वोक्त घडा है सही पर वह तांबे का नही है, अन्दर के खंड मे नही है, अगहन महीने में नहीं है, लाल रंग का नहीं है।
उपर्युक्त फूलदान भी इसी तरह 'नही है' ऐसा निश्चित होगा । स्व' की अपेक्षा से जो था, सो पर द्रव्य, पर क्षेत्र, पर काल और पर भाव की अपेक्षा से नही ही है ऐसा कहने मे कोई उलझन नही है। इनमे से एक ही अपेक्षा का उपयोग करते हुए उसमे से फूल निकाल कर मूग भर दिये जायें