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इसके अतिरिक्त इस फॉरमुला की विशेषता यह वह सपूर्णतया बुद्धिगम्य - Completely rational है। इसमे ऐसा गूढ, गहन या अगम्य कुछ भी नही जो समझ मे न श्री सके ।
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अच्छा तो अब हम सात भगो-कसौटी सिद्ध निर्णय - त्रो की जाँच करे । कसौटी पर कसने के लिये किमी सुवर्णयुक्त वस्तु को श्रावश्यता तो होती ही है, हमे भी यहाँ इसके लिये किसी वस्तु की जरूरत होगी ।
जैन तत्त्ववेत्ताग्रो ने इसके लिए 'घट' अर्थात् 'घडा' चुना है हम भी उसी से प्रारंभ करेंगे । यहाँ पहले निर्दिष्ट 'स्यात्' और 'एव' शब्दो का पूरा महत्त्व है प्रत. हम इन दोनो शब्दो को साथ लेकर ही ग्रागे वढोगे ।
कसौटी १ - स्यादस्त्येव घट |
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इस वाक्य को भली भाँति समझने के लिए हम सधियो का विग्रह कर लेते है - स्यात् + ग्रस्ति + एव घट । इसका अर्थ हुआ — कथचित् घडा है ही । यहाँ हमने 'स्यात्' शब्द प्रयुक्त किया है । इसका अर्थ तो हम पिछले पृष्ठो मे समझ चुके हैं । यह वाक्य हमे बताता है कि 'अमुक अपेक्षा से घड़ा है ही ।' साथ ही साथ दूसरी किन्ही अपेक्षाग्रो की गर्भित सूचना भी देता है ।
पहले हम जिन चार श्राधारो की चर्चा कर चुके है उनमे 'स्व' शब्द जोड कर हमे यह निश्चित करने मे कोई कठिनाई नही होती कि 'स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्व-भाव की अपेक्षा से घड़ा है ।' 'यह घड़ा है हो' यह एक निश्चित वात हो गई । अव हम यह समझेंगे कि उक्त चार अपेक्षाएँ घडे को किस तरह लागू होती है ।