________________
पहले उने समझने के लिये अत्यन्त आवश्यक 'पेक्षा' गब्द को समझ, ले।
अपना उसके बाद के प्रकरण में हम 'सप्तभगी' पर विचार करने वाले हैं। 'सप्तमगी' भिन्न भिन्न अरेखाओं में प्रायोजित मात वाक्यो का नमूह है। अत उन पर विचार करते समय हमे 'अपेक्षा' बन्द का प्रयोग सतत अपनी दृष्टि मे रखना होगा।
पहले हम 'चार साधार विषयक विवेचना कर चुके है । वहाँ 'द्रय, क्षेत्र, काल और भाद' इन 'अपेक्षाचतुष्टय' का कुछ परिचय तो दिया जा चुका है। फिर भी 'मातभनी' विपक विवेचना प्रारभ करने से पहले 'अपेक्षा गन्द को भलीभाति नमन लेना अत्यन्त आवश्यक है।
सामान्य व्यवहार में अपेक्षा के भिन्न भिन्न अर्थ किये जाते है, या इन जल का उपयोग भिन्न भिन्न अयों में किया जाता है । भाषा का उपयोग करने मे जैने रुढि और परम्परा के कारण भी अनेक गब्दो का प्रयोग भिन्न भिन्न अर्थो मे किया जाता है, वैसे ही उनकी व्युत्पत्ति की दृष्टि से विविध मूल अर्थों में भी प्रयोग होता है। कोपकार इस प्रकार किये जाने वाले परपरागत अर्थ और अनेक मूल अर्थ भी स्वीकार करते है और शब्दकोष में उन शब्दो के आगे उनके मूल अर्थ तथा खटिजन्य अर्थ भी देते हैं। ___ इस नेक-अर्थ-पद्धति में 'अपेक्षा' शब्द का प्रयोग 'पागा, इन्छा और आकांक्षा' के अर्थ मे होता है परन्तु उसका स्याद्वाद के सम्बन्ध में मूल अर्थ और ही होता है।
'आप किस वस्तु की अपेक्षा रखते हैं। ऐसी अपेक्षा न