________________
१६४
क्या करते है ? क्या वही रुक कर सडे हो जाते हैं ? नहीं । उस समय हम मुख्य मार्ग के आसपास बने हुए उपमार्ग ( Diversion ) का ग्राश्रय लेते है । उपमार्ग भी हम ऐसा चुनते हे जो हमे पुन मूल मार्ग पर पहुंचा दे । यहाँ मार्ग पर के टूटे भाग या खुदाई के पास रुक जाने के बदले ग्रव हम दूसरे मार्ग पर मुड गये, तब भी हमारी दृष्टि मूल मार्ग पर वापस याने की ही थी ।
व्यवहार दृष्टि से, धर्म के ग्राचरण में भी जब हम ऐसी किसी परिस्थिति मे पहुँच जाते हैं तब ग्रन्य कोई आय न होने के कारण हमे अपवादमार्ग का आश्रय लेना पडता है । परन्तु इस प्रकार के अपवाद में भी हमारी दृष्टि निश्चय पर ही होनी चाहिए । जब भी किसी अपवाद ( Diversion ) का उपयोग करने का वक्त आवे तव निश्चय के अनुसरण के लिए ही हमे उसका उपयोग करना चाहिए। ऐसे किसी अपवाद के उपयोग मे यदि हम उत्सर्ग-मूल मार्ग को भूल जायें तो हम फिर चक्कर मे पड जायें। यह बात भलीभाँति याद रखनी चाहिये । सीधे माग पर चलने मे दुर्घटना या प्राणहानि का भय नही हे ।
आध्यात्मिक क्षेत्र की इतनी चर्चा के बाद यह जानना भी वडा आनन्ददायक होगा कि भौतिक क्षेत्र मे निश्चय और व्यवहार की क्या उपयोगिता है ?
इस विषय की चर्चा करने से पूर्व एक बात भलीभांति ध्यान मे रखनी चाहिये । भौतिक दृष्टि से जिसे सुख-दुख माना जाता है वह वास्तविक सुखदुख नही है । जिसे प्राप्त करने के वाद दु.ख प्राप्त होने का कभी प्रसग ही न यावे, वही सच्चा सुख