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नही होती, असलो कठिनाई तो उम मान्यता के अनुसार आचरण करने में होती है।
इस संसार में हम ऐसे अनेक मनुप्यो को देखते हैं जो शुभ आशय वाले होते हुए भी शुभ प्राचरण नहीं कर सकते । इसके कारण तो अनेक प्रकार के होते हैं । जैन दार्शनिको ने जो स्याद्वाद-अनेकातवाद की तत्त्वरचना की है उसमे इस बात का पूरा खयाल रखा है । निश्चय और व्यवहार के सम्बन्ध मे स्थाद्वाद एक सुन्दर समतुला Balance के समान हे । कर्म से वद्ध ससारी जीव को निश्चय दृष्टि सुरक्षित रखने के लिए व्यवहार के आचरण में कितनी कितनी कठिनाइयो का मामना करना पड़ता है सो जैन दार्गनिको को अच्छी तरह ज्ञात है। इसलिए उन्होने व्यवहार मे 'उत्सर्ग' और 'अपवाद' नामक दो विभाग किये है। ___'उत्सर्ग' अर्थात् निश्चय की ओर ले जाने वाला मूल मार्गRight Royal Highway 'अपवाद' अर्थात् मूल मार्ग की रक्षा के लिए काम मे लिया जाने वाला उपमार्ग Diversion | यह अपवाद उक्त मूल मार्ग को रक्षा के लिए तथा उसके सफल अनुसरण के लिये है। यह भी साव्य की सिद्धि के एक साधनउपाय के तौर पर ही वरिणत है।
इस बात को समझने के लिए हम एक सीधा और सरल व्यावहारिक दृष्टान्त ले।
हम अहमदाबाद मे आगरा जाने के लिए मोटर लेकर मोटर के मार्ग से (National Highway) पर यात्रा कर रहे है। इस मुख्य मार्ग पर, रास्ते मे कही सडक टूटो हुई हो या मरम्मत का काम ( Repal work ) चल रहा हो तो हम