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है । इस नय की यह विशिष्टता है कि यह शब्द का प्रचलित यर्थ नहीं किन्तु मूल अर्थ प्रकट करता है। उदाहरणार्थश्रीकृष्ण के अनेक नाम है । प्रत्येक नाम का कोई न कोई विशेष Specific अर्थ होता ही है । यद्यपि ये सभी नाम व्यवहार मे केवल 'श्रीकृष्ण' का ही नाम सूचित करते है, फिर भी समभिरूढ दृष्टि से नाम भेद के कारण प्रत्येक का लग २ अर्थ है ।
'राजा' शब्द का अर्थ है 'राज्य करने वाला ।' उसके लिये 'गो-ब्राह्मण प्रतिपाल' - यह शब्दप्रयोग किया जाने पर शब्दभेद के कारण ग्रर्थभेद भी हो ही जाता है । यहाँ राज्य करना तथा गाय व ब्राह्मण का पालन करना - ये दोनो धर्म राजा मे निहित हैं, परन्तु यह समभिरूढ नय राजा के अलग-अलग धर्म को लेकर, जो जहाँ कार्यशील होगा, वहाँ उस शब्द का प्रयोग करेगा ।
इस प्रकार 'शब्दभेद' से प्रार्थभेद को जो जानता और समझाता है, वह समभिरूढ नय कहलाता है ।
(७) एवंभूत नय यह क्रियाशील -Active- नय है । यह शब्द के क्रियात्मक अर्थ को ग्रहण करता है और जिस समय क्रिया होती हो उस समय हो, क्रिया के उसी अर्थ मे उस शब्द को ग्रहण करता है । इस नय का नाम 'एवभूत' इसलिए है कि यह किसी शब्द का जो अर्थ है उसी प्रकार से ( एव ) वस्तु इस समय हुई ( भूत ) है अर्थात् उस वस्तु को उन सयोगो मे ही स्वीकार करता है | किसी भी शब्द में जिस क्रिया का भाव समाया हो वह क्रिया यदि वर्तमान मे जारी न हो तो यह नय उस शब्द को उस अर्थ मे स्वीकार नही करेगा |