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सात तय पिछले पृष्ठो मनम, प्रमाण तथा निक्षेप विषय में साधारगा भान प्राप्त पार नहै। हमने देगा कि ये मन अपने अपने डग ने वन्नु अथवा पदार्ग के विषय में जानकारी देते
न प्रकार जो ज्ञान मिलता है वह 'प्रमाणभूत ज्ञान' होता।
यदि म जन नन्वज्ञान के भिन्न भिन्न विद्वानो से मिले तो बनने से प्रत्येक ने जिम मात्रा पर प्रभुत्व साप्त किया होगा, उनी पापा के विषय मे वह हमने नहेगा । एक विद्वान् हमे इस तत्त्वज्ञान कोनियमिक पहलू नमभागा, दनरे के पाम इसका गारगानिका परिचय मिलेगा, तोरा बिहान हमे इसी माहित्यिक वैभव का दर्गन गएगा। 37 प्रकार हमे भिन्न भिन्न मून गे भिन्न भिन्न प्रकार की जानकारी मिलेगी। उन सब की वातें यदि पानिन की जाये तो भागिर कुल मिलाकर वे मव एक ही विषय-जनतत्त्वज्ञान-गे गम्बन्धित बाते होगी।
नब विद्वानो से हमे उनके 'अभिप्राय' भी जानने को मिलेगे। जो जिन मासा का अधिकारी विद्वान् होगा वह उस गाना के विषय में अपना अभिप्राय बाहेगा। यदि उन सबके अभिप्राय एकत्रित किये जाय तो मालूम होगा कि उन सब में पितृविपय-तत्त्वज्ञान के ही अग होगे।
यदि हम इस दृष्टि से 'नय' के विपय मे विचार करें तो प्रतीत होगा कि जिस प्रकार हमें प्रत्यक्ष तथा परोक्ष प्रमाण से वस्तु का ममग्न रूप में यथार्थ ज्ञान मिलता है, उसी तरह वस्तु