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वर्तमान अवस्था या उसके वर्तमान गुण धर्म के अनुसार सवोंधित करना 'भाव निक्षेप' कहलाता है । 'पडित जवाहरलाल' यह शब्द 'नाम निक्षेप' सूचित करता है । उनके किसी चित्र या पुतले को यह नाम देना 'स्थापना निक्षेप' है । जब वे प्रधानमंत्री पद से अलग हो जायें तब भी उनका 'प्रधानमत्री' के तौर पर परिचय कराना 'द्रव्य निक्षेप' है, जब कि, वर्तमान मे वे जब तक प्रधानमंत्री पद पर विद्यमान है तब तक उनको 'भारत के प्रधानमंत्री' कहना 'भाव निक्षेप' गिना जाता है ।
इसी प्रकार दान देने वाले को दाता, राज्य करने वाले को राजा, कुत्र्ती लडने वाले को पहलवान, काव्य लिखने वाले को कवि, सघ निकालकर ले जाने वाले को सघवी ( सघपति ) ग्रादि शब्दो द्वारा उनकी अपनी अपनी क्रिया की विद्यमानता मे उन्हें उस प्रकार पहचानना 'भावनिक्षेप' कहलाता है ।
इस प्रकार इन चार निक्षेपो में हम एक ही वस्तु या व्यक्ति को चार भिन्न भिन्न प्रकार से पहचानते है । पहले मे पहचानने के लिये सजा या नाम, दूसरे मे मूल व्यक्ति के ग्राकार को या नाम को स्थापना ग्रन्य वस्तु मे, तीसरे मे भूतकाल अथवा भविष्यकाल का वर्तमान मे सबध, और चौथे मे वस्तु या व्यक्ति के वर्तमान काल में विद्यमान गुणधर्म का उल्लेख - इतना इन चार निक्षेपों के अन्तर्गत ग्राता है ।
निक्षेपो का इतना विवरण देने के वाद ग्रव हम नय और निक्षेप का सवध समझ ले ।
'नय' ज्ञानमूलक, वचनात्मक, तथा ज्ञानात्मक, है । 'नय' के द्वारा हम वस्तु का ज्ञान प्राप्त करते हैं । प्रत वस्तु ( पदार्थ )