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१५० ये सात नय जो हैं वे सब प्रत्येक वस्तु के लिये अपना अपना अभिप्राय रखते है। इन सातो के अभिप्राय एक दूसरे से भिन्न होते हुए भी ये सभी नय एकत्र मिल कर स्याद्वादश्रुत रूपी आगम की सेवा करते है। इस बात को अच्छी तरह समझने के लिये हम किसी राज्य के प्राय और व्यय के दो विभागो का उदाहरण लेते हैं। ___ आय विभाग केवल आमदनी करता है । व्यय विभाग केवल खर्च करता है। ये दोनो विभाग परस्पर विरोधी गुणधर्म वाले होते हुए भी, साथ मिलकर राज्य की सेवा ही करते हैं। " किसी बैंक मे जाइये । वहाँ रुपये लेने वाला कोपाध्यक्ष (Receiving Cashier) और रुपये देने वाला कोपाध्यक्ष (Paying Cashier)एक दूसरे से विलकुल विपरीत कार्य करते है, फिर भी दोनो व्यक्ति वैक की सेवा ही करते है। ___इसी अर्थ मे-ये सातो नय परस्पर विरोधी अभिप्राय रखते हुए भी, साथ मिलकर स्यावाद तत्त्वज्ञान की सेवा ही करते है । एक ही राज्य के भिन्न स्वभाव वाले तथा एक दूसरे का विरोध करने वाले सेवक उस राज्य की सेवा करते है, उसी तरह ये सातो नय समग्र रूप से स्यावाद के सेवक ही है ।
स्यावाद और नय के बीच का सवध हमने सिधु और विदु जैसा कहा है । विदु समुद्र नहीं है, तो समुद्र से भिन्न भी नहीं है । वह समुद्र का एक अश है । इसी तरह नय स्याद्वाद से भिन्न नही है, स्याद्वाद-रूप भी नहीं है, स्यावाद का एक अग है।
हम ऊपर कह चुके है कि नय वस्तु के अमुक स्वरूप या गुण, धर्म का ज्ञान देते है। तो अब ज्ञान प्राप्त करने की पद्धति