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मछलियां, तू वे, पानी मे तैरते हैं, कोया और पत्थर पानी मे डूबते है,मूठ खाने से वायु का शमन होता है, ई से विरेचन (जुलाव) होता है, कोकडुदाना नहीं गलता, अस्थि मे से शख, उष्णता के रवभाव वाला मूर्य, गीतलता के स्वभाव वाला चन्द्र, मुंह मीठा करने वाली ईख, प्रादि सभी द्रव्य अपने अपने 'स्व-गुण' के स्वभाव के अनुसार बरतते है, अत कार्य का कारण काल नही परन्तु स्वभाव हो है।
भवितव्यता:-जो लोग भवितव्यता को कारण मानते हैं वे सब काल और स्वभाव का तिरस्कार करते है। उनका कहना है कि 'जो न होने वाला हो वह नहीं होता।' भवितव्यतानुसार जो होने वाला होता है सो हुए विना नही रहता । नियति जिस ओर मनुष्य के मन को खीच लेती है, उस ओर मनुष्य विवश होकर खिंचता है । यदि नियति (भवितव्यता) अनुकूल हो तो बिना सोचे ही कार्य हो जाता है । ____ 'वसन्त ऋतु मे आम्रवृक्ष की प्रत्येक डाली पर लाखो वौर उगते है । उनमे से कितने ही झड जाते है, कुछ अचार की केरो, कुछ ग्राम और कुछ साख बनते है । गर्भ में से जन्म लेने वाले सभी जीते नही । यह सव प्रत्येक की अपनी अपनी भवितव्यता का सूचक है।' वे एक मजेदार दृष्टान्त भी देते हैं___"एक पक्षी वृक्ष पर वैठा बैठा कल्लोल कर रहा है । जमीन पर कुछ दूर एक गिकारी तीर कमान लिये उस पक्षी का शिकार करने आता है । धनुष्य पर वारा रख कर उस पक्षी को मारने के लिये निशाना ताकता है । दूसरी ओर आकाग मे ऊँचे उडने हुए एक वाज की नजर भी उस पक्षी पर पडती है। उस पक्षी को अपनी चोच में लेने के लिये,