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३) भगवान महावीर के ग्रायुण्य का काल = उस समय के ७२ वर्प।
४) तीर्थकर प्रभु के निर्वाण का काल =जिम समय निर्वाण प्राप्ति हुई मो।
५) पानो मे मिट्टी के घुलने का काल = दोनो का मिश्रण होने मे जितना समय लगे सो।
इस प्रकार जब किसी वस्तु के सवध मे काल की अपेक्षा की बात करते है तब उमसे उस वस्त के उद्भव सम्बन्धी, परि
मन का, अस्तित्व का तथा कार्य करने का काल समझना चाहिए। इसमे भी विवेक-बुद्धि का भलीभाँति उपयोग करना चाहिए।
चौथा प्राधार है 'भाव' । यहाँ 'भाव' शब्द का अर्थ है 'वस्तु के गुण धर्म' । उदाहरणार्थ रूप, रस, गध, स्पर्ग, प्राकृति, कार्य (Function) ग्रादि सव 'भाव' के अन्तर्गत है । सक्षेप मे, वस्तु के गुण, शक्ति तथा परिणाम को भाव' कहा जाता है । अग्रेजी मे इसे Quality and functions of the substance कहते है । ये गुण धर्म, लक्षण, प्रकार, जाति, वर्ग आदि समय समय पर बदलते (Everchanging) रहते है।
यह भाव प्रत्येक वस्तु का अपना-अपना स्वभाव है। प्रत्येक वस्तु के स्वभाव भिन्न भिन्न होते है । एक वस्तु के स्वभाव को 'समानता' दूसरी वस्तु के स्वभाव से हो सकती है, परन्तु एकता नहीं होती। अर्थात् प्रत्येक वस्तु का अपना अपना अलग भाव-स्वभाव होता है और परिवर्तनशोल ( Changing ) होता है।