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नही है' यह भी तथ्य है । जब मै कहता हूं कि 'पेन्सिल, है' तब जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है, यह बात सत्य है, फिर भी जहा तक मेरे मित्र का सम्बन्ध है, यह कथन असत्य वन जाता है ।
यहाँ पर ' स्यात् ' शब्द का प्रयोग करने पर यह एक निश्चित वात हो जाएगी। फिर इसमे किसी के लिए उज्र या विवाद को स्थान नहीं रहेगा। इस शब्द का प्रयोग करने पर निश्चित तौर से यह सूचित होगा कि, 'मेरे हाथ को अपेक्षा से पेन्सिल है हो।' मेरे मित्र थो विनुभाई भी यदि स्यात्' शब्द का प्रयोग करे तो उससे यह बात स्पष्टतया फलित होगी कि 'उनके हाथ की अपेक्षा से पेन्सिल नही ही है । इस ‘स्यात्' शब्द ने यहा आकर एक विशिष्ट प्रकार की निश्चित स्थिति का निरूपण किया।
"जो मेरे पास है सो दूसरे के पास नही है, और जो मेरे पास नही है वह दूसरे के पास है" इस बात का स्पष्ट खयाल मुझे, मेरे मित्र को, तथा सव सुननेवालो को दिलाने के लिये 'स्यात्' शब्द का प्रयोग हुअा है । इसका विशेष स्पष्ट अर्थ यह है कि जब हम 'स्यादस्ति' कहते है, तब यह पद 'पेन्सिल 'मेरे पास है' यह निश्चित कहने के अतिरिक्त 'यह पेन्सिल मेरे हाथ मे ही है उक्त मित्र के हाथ मे नही है' परोक्षत ऐसा भी स्पष्ट सूचित करता है । यहाँ जब 'है' कहा जाता है तब 'कथचित्-अमुक अपेक्षा से' होने की बात कही जाती है।
इस पर से स्पष्टतया समझ मे आगया होगा कि यह 'स्यात्' शब्द किसी एक वस्तु की किसी एक स्थिति को स्पष्टतः प्रकट करता है । उस वस्तु की उस स्थिति विशेष तक