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चित् है ही।" इस पद मे हम 'पेन्सिल शब्द लगा दें। तव इस पद का अर्थ इस प्रकार होगा, कथचित् पेन्सिल है ही।" ___यह वात करते समय हम एक स्पष्ट खयाल रख कर चले । "यह सब लिखते समय मेरे घर के एक कोने मे रखे हुए टेवल पर पड़े हुए कागज पर चलती हुई, मेरे हाथ के पजे की अंगुलियो के बीच पकडी हुई यह पेन्मिल है । फिर, यह पेन्सिल अच्छी किस्म की लकडी की बनी है, और मैं लिख रहा हू तव दोपहर के तीन बजे है।" ____ इस पेन्सिल मे लकडी द्रव्य है, मेरे हाथ की अंगुलियाँ
क्षेत्र, दोपहर के तीन बजे का वक्त काल, और अच्छी किस्म भाव है। यह ध्यान मे रखियेगा ।
अवयदि मै इतना ही कहूँ कि 'पेन्मिल है तो मेरे पास बैठे हुए मेरे विद्वान मित्र विनुभाई तुरन्त बोल उठेगे कि, " पेन्सिल नहीं है।" यदि मै उनको ओर ताक् तो वे फिर तड़ाक से वोलेगे कि, "आपके हाथ मे पेन्सिल भले हो, मेरे हाथ मे नही है ।" उनके कथन को क्या गलत कहा जा सकता है ? नहीं तो क्या मैने जो कहा सो गलत था ? नहीं,वह भी सच था ।
पेन्सिल की बात करते हुए एकदम से दो परस्पर विरोधी कथन उपस्थित हो गये-१) पेन्सिल है, २) पेन्सिल नहीं है। यहाँ पर 'पेन्सिल है' ऐसा कहने मे मै सही हूँ और 'पेन्सिल नही है' ऐसा कहने मे मेरे मित्र विनुभाई भी सही है । परन्तु अपेक्षा से ये दोनो वाते गलत भी सिद्ध होती है । अत. 'स्यात्' शब्द के प्रयोग की आवश्यकता यहाँ उपस्थित होती है । एक तरफ 'पेन्सिल है' यह तथ्य है, दूसरी ओर 'पेन्सिल