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स्वरूप तो छिपा ही था । ओक्सिजन और हाइड्रोजन (H20) नाम के दो प्रकार के वायु, जिनके रासायनिक सयोग से पानी वना है वे भी सभी प्रकार के परिवर्तन के बीच पानी मे एक या दूसरे रूप मे मौजूद रहते है ।
मिट्टी से जब घडा बना तब उस घडे के स्वरूप मे मूल पदार्थ मिट्टी का अस्तित्व तो है ही। जब उसी घटे के टुकडे हो जाते है, तव उस दूसरे स्वरूप में भी मूल द्रव्य मिट्टी का अस्तित्व तो रहता ही है। ___इसी न्याय गे, तत्त्वज्ञान की भूमिका के किसी भी वस्तु तत्त्व को, सर्वथा सत्य या सर्वथा असत्य, सर्वथा नित्य अथवा सर्वथा अनित्य मानने मे हम बडो भून करते है। यदि सभी वस्तुतत्व जैसे है वैसे ही रहे, उनमे परस्पर विरोधी गुणधर्मों का यदि अभाव हो और वे परिवर्तनशील न हो तो फिर उनका अस्तित्व बिलकुल निरुपयोगी हो जाएगा। पत्थर का रूप और कद जैसे पहले था ठीक वैसा ही यदि सर्वकाल मे रहे तो फिर उमका मतलब यह हुआ कि उसमे क्रियाशीलता का अभाव है। और यदि उसमे क्रियाशीलता न हो तो फिर उसके द्वारा किसी तरह के कार्य को उम्मीद कैसे की जा सकती है। ___ठीक उसी तरह, सिर्फ ब्रह्म को ही 'सत्य' माना जाय और यदि उसके अस्तित्व को बिलकुल स्थिर और अपरिवर्तनशील माना जाय तो फिर उसमे क्रियागीलता का अभाव होने के कारण उसकी क्या उपयोगिता रहेगी?