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वस्तु का नित्यत्व और अनित्यत्व समझना भी प्रामान है । 'सब कुछ परिवर्तनशील है' इस बात को तो सभी लोग स्वीकार करते है । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा मे तथा अवस्था (पर्याय) भेद के कारण एक हो चीज अनेक स्पो मे परिवर्तित होती रहती है। चूकि वह परिवर्तनशील हे इसलिये उसे अनित्य कहा जा सकता है-अनित्य हे । फिर भी, उसका मूल द्रव्य, भिन्न-भिन्न स्वत्पो मे भी कायम रहता हैं, इसलिये उसे नित्य भी कहा जा सकता है--नित्य है। जैसे उसे सिर्फ नित्य कहना गलत है ठीक उसी तरह, मिर्फ अनित्य कहना भी उतना ही गलत है। ____ यह परिवर्तन भी सहमा-यकायक नहीं होता । वह तो अपने समयानुसार होता है । कपडे का मैला हो जाना, चावल से भात बनना, गेहूँ से रोटी बनना, वालक का वृद्ध होना, ये सव वाते यकायक नहीं हो जाती। इन सवका अपना-अपना कालक्रम है । इस तरह से सब परिवर्तन होते हुए भी, उनकी मूल वस्तु का सर्वथा नाग भी नहीं होता।
किसी भी एक पदार्थ के एक स्वरूप का नाश होते ही, वह हमे दूसरे स्वरूप में नजर आता है। उसके मूल द्रव्य का, इस परिवर्तन के कारण, सर्वया नाग नहीं होता। यदि पानी अग्नि के सम्पर्क मे आये तो वह जल जाता है और भाप बनकर उड जाता है । यदि यात्रिक साधन द्वारा उसी भाप को किसी वरतन में इकट्ठा करले तो वही फिर एकबार पानी का रूप धारण कर लेता है । फिर भले ही उसे 'डिस्टिल्ड वॉटर' के नाम से क्यो न पहचाना जाय । उस भाप में पानी का मूल