________________
54
विदेशों में जैन धर्म
गए और वहां जैन श्रमणों के लिए अनेक विहार, उपाश्रय आदि स्थापित किए गए। अशोक और सम्प्रति दोनों के कार्यों से भारतीय संस्कृति विश्व संस्कृति बन गई और आर्यावर्त की सीमाओं के बाहर सर्वत्र पहुंच गई । इसने असूर्यपश्या राजरानियों, राजकुमारियों, राजकुमारों और सामन्तों को भी जैन श्रमण श्रमणियों के वेश में दूर-दूर के देशों में विहार कराकर चीन, ब्रह्मा, सीलोन (श्रीलंका). अफगानिस्तान काबुल बिलोचिस्तान, नेपाल. भूटान, तुर्कीस्तान आदि में भी जैन धर्म का प्रचार कराया। अपने देश भारत में तो सम्राट सम्प्रति का अखण्ड सांम्राज्य था ही।
अनेक विद्वानों का यह भी मत है कि अशोक के नाम से प्रचलित शिलालेखों में से अनेक शिलालेख सम्राट सम्प्रति द्वारा उत्कीर्ण कराये गये थे। अशोक को अपने पौत्र सम्प्रति से अनन्य स्नेह था । अतः जिन अभिलेखों में "देवानां प्रियरस पियदंस्सिन लाजा" (देवताओं के प्रिय प्रियदर्शिन राजा) द्वारा उनके अंकित कराये जाने का अभिलेख है. वे सम्राट अशोक के न होकर सम्राट सम्प्रति के होने चाहिए, क्योंकि "देवानांप्रिय" तो अशोक की स्वयं की उपाधि थी। अतएव सम्प्रति ने अपने लिए "देवानां प्रियस्य प्रियदर्शिन राजा" उपाधि का प्रयोग किया है। विशेषकर जो अभिलेख जीव-हिंसा निषेध और धर्मोत्सवों से सम्बन्धित है. उनका सम्बन्ध तो मौर्य सम्राट सम्प्रति से ही है।
मौर्य सम्राट सम्प्रति द्वारा धर्म राज्य के सर्वोच्च आदर्शों के अनुरूप राज्य स्थापित करने के प्रयत्नों के लिए, राजर्षि सम्राट सम्प्रति की तुलना, गौरव के उच्च शिखर पर आसीन इजराइल के सम्राट दाउद और सुलेमान के साथ की जा सकती है और धर्म को क्षुद्र स्थानीय सम्प्रदाय की स्थिति से उठाकर विश्व धर्म बनाने के प्रयास के लिए ईसाई सम्राट कान्स्टेन्टाइन के साथ की जाती है। अपने दार्शनिक एव पवित्र विचारों के लिए जैन सम्राट सम्प्रति मौर्य की तुलना रोमन सम्राट मार्शल के साथ की जाती है। सम्प्रति की अपनी सीधीसरल पुनरुक्तिपूर्ण विज्ञप्तियों में क्रामवेल की शैली ध्वनित होती है. एवं अन्य अनेक बातों में सम्प्रति खलीफा अमर और मुगल सम्राट अकबर महान की याद दिलाता है। विश्व के सर्वकालीन महान सम्राटों को कोटि में सम्राट अशोक और सम्राट सम्प्रति भारतीय इतिहास के गौरव रूप और रहेगे। जैन धर्म के साथ इन दोनों का ही