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________________ विदेशों में जैन धर्म । 103, नेमीचन्द्राकार्यकृत टीका - अध्ययन 9ए पत्र 141. 104 भगवती सूत्र -1539. 105 सयमराइच्च कथा - 42275. ' 106. कविकल्हणकृत राजतरगिणी (कऽमीर का इतिहास) - सन 1148.49 ईसवी - 1/101; 1/102; 1/103. 107. कवि कल्हणकृत राजतरगिणी (कश्मीर का इतिहास) सन् 1148.49 ईसवी - 1/101-103. 108 कवि कल्हणकृत राजतरगिणी (कश्मीर का इतिहास) - 1/108. 109 इतिहास समुच्चय - बाबू हरिश्चन्द्र. पृष्ठ 18. 110 कवि कल्हणकृत राजतरंगिणी -4/202. 11 कवि कल्हणकृत राजतरगिणी - तरग 4. 112 कवि कल्हणकृत राजतरगिणी -- 4/211. 113 कवि कल्हणकृत राजतरगिणी - 4/210. 114 मेजर जरनल फरलोग का मत है कि पार्श्वनाक कश्मीर मे पधारे थे। 115 श्रीमत पुराण, अध्याय 73. श्लोक 27-30. 116 C.J. Shah - Jainism in Northern India, London, 1932. 117 मध्य एशिया और पजाब में जैन धर्म -- हीरालाल दुग्गड। 11 महामात्य वस्तुपाल एव तेजपाल द्वारा जेन धर्म प्रचार - मध्य एशिया और पजाब मे जैन धर्म :- हीरालाल दुग्गड। 119 सम्राट् खारवेस द्वारा अपने राज्य के बारह वर्ष मे उत्तरापथ, तक्षशिला, गधार आदि पर विजय प्राप्त और सर्वत्र जैन धर्म प्रचार। 120 विमलाद्रि शत्रुजयावतार प्रकरण तथा जैनाचार्य श्री रत्नशेखर सूरि का श्राद्ध विधि प्रकरण - मध्येशिया और पंजाब में जैन धर्म - हीरालाल दुग्गड। 121 श्राद्ध विधि प्रकरण - जैनाचार्य श्री चन्द्रशेखर सूरि - मध्येशिया और पजाब मे जैन धर्म - हीरालाल दुग्गड। 122 महाराजा कुमारपाल सोलकी द्वारा भारत एवं विदेशो मे तुर्किस्तान में जैन धर्म प्रचार - मध्य एशिया और पजाय में जैन धर्म - हीरालाल दुग्गड़। 123 महाराजा कुमारपाल सोलंकी द्वारा पश्चिम मे तथा विदेशों में व्यापक धर्म प्रचार -- मध्य एशिया और पजाब मे जैन धर्म - हीरा लाल दुग्गड । 124 पेथडशाह द्वारा भारत एवं विदेशों में कारक धर्म प्रचार एवं मन्दिर निर्माण -- कवि कल्हणकृत राजतरंगिणी एव मध्य एशिया और पंजाब में जैन धर्म हीरालाल दुग्गड़। 125. कश्मीर नरेश, सत्यप्रतिस अशोक महान बड़ा प्रतापी जैन राजा कश्मीर में पार्श्वनाथ के लोकाल से पहले हो गया है। 126 जम्बूद्वीप प्रज्ञास्ति (स्टीक) - पूर्व मात्र -158/1, पृष्ठ में उल्लेख है कि चक्रवर्ती सम्राट भरत ने बषभदेव की चिता भूमि पर अष्टापद पर्वत की 'बोटी पर स्तूप का निर्माण या था।
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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