________________
मर्द्धवृत्त में शेष मंचपुरी और स्वर्गपुरी या वैकुण्ठपुरी नामकी दो गुफाएं हैं। इन गुफाओं में जो शिलालेख है, उसका ऐतिहासिक मूल अपरिमेय है, कारण चक्रवर्ती सम्राट् खारवेल के हाथीगुफा के शिलालेख के साथ उनका सम्पर्क है ।
मंचपुरी गुफा के सम्मुख एक विस्तृत प्रागण है । उसी के पास में बरामदा तथा दक्षिण पार्श्व में स्थित बरामदे में दो-दो मूर्तिया हैं । प्रधान बरन्डे की छत के सम्मुख नाना प्रकार की मूर्तिया खोदी गई है । वे सब वर्त्तमान प्रस्पष्ट हो गई हैं । प्रकोष्ठ के मध्य में जाने के लिये जो पांच द्वार निर्दिष्ट हैं उन्ही द्वारो तथा पाश्वं स्तभो में वृक्ष, लता, पुष्प आदि का चित्रण प्रति सुन्दर रूप में प्रकित है । इन शिलालेखो से मालूम पडता है कि सब गुफाएँ महामेघवाहन कदम वा कुजप के द्वारा निर्मित हुई थी । ये निश्चय ही खारवेल के बशधर होगे ।
फर्गुसन ने इस गुफा को पातालपुरी नाम दिया है । मंचपुरी या पातालपुरी के पश्चात् स्थित पहाड में स्वगंपुरी गुफा बनी है। मित्र और फर्गुसन के अनुयायो इनको बैकुण्ठपुरी भी कहते है । इसके विराट प्रकोष्ठ के पास एक बरामदा है । दक्षिण पार्श्व में एक छोटा प्रकोष्ठ है। बरामदे की छत प्रनेकाश में टूट गई है । इसलिये स्तंभ या प्रहरी की मूर्ति यादि थी, यह नष्ट हो गई है । उसमें स्थित शिलालेख मे मालूम पडता है कि कलिंग के जैन-संन्यासी तथा महत के लिय राजा
लाक की दुहिता हाथी साहस की पौत्री के द्वारा निर्मित हुई थी । यह थी खारवेल की प्रधान रानी ।
गणेशश-गुफा के भीतर की दिवाल पर गणेश जी की प्रतिमूर्ति खोदी हुई है । इस गुफा में दो प्रकोष्ठ और एक बरामदा है। गुफा में प्रवेश करने के दोनो पार्श्व में दो हाथियो की
-१०२