________________
है। इसकी कोठरियां दो पक्तियों में सबी हुई है। गुफाका दक्षिण-पूर्व पाश्वं खुला हुमा है । नीचेकी पंक्तियों में पाठ एवं ऊपर की पति में छ. प्रकोष्ठ है । इसके ऊपर की मंजिल में स्थिति विस्तीर्ण बरामदा वास्तविक रानी गुफाका एक प्रधान विशेषत्व रखता है। यह बीस फीट लम्बा है। इन्हीं बरामदों में प्रतिहारियोंकी प्रतिमूर्तियां प्रति स्पष्ट रूपमें खोदी गई है। नीचे के मजले में स्थित प्रहरी एक सुसज्जित सैनिक के समान दिखाई पड़ता है। बरामदे की एक विशेषता यह भी है कि वहां पर बैठने के लिये अनेक छोटे छोटे उच्चासन निर्मित किये गये हैं। पश्चिम भारत की प्राचीन गुफामो में इसी तरह के मासन दिखाई पड़ते है। बरामदे की छतको साधने के लिये बहु सख्या में प्रस्तर स्तभ बनाये गये है। किन्तु दुर्भाग्य-वश उनमें से अधिकाश स्थम्भ जीर्ण-शीर्ण हो गए है । रानी गुफासे केवल तीन ही प्राचीन स्तम्भ समय की गतिके विरुद्ध संग्राम कर बयेष्ठ क्षतविक्षत होकर अबतक भी बचे हुए है।
गुफामों के भीतर प्रवेश करने के लिये भी द्वार बनाये गये हैं । बडी-बडी गुफामो के निमित्त एक से अधिक द्वार निर्मित किये गये है। ऐसा हमें देखने को मिलता है । इन्ही द्वारों में ऊपर के भागमें जैनधर्मके नाना प्रकार के उपाख्यान खोदे हुए थे। ये उपाख्यान प्रति प्राञ्जल रूप में वर्णित हो सकते है। किन्तु उस सम्बन्धमें गवेषण करके प्रत्येकका तथ्य सग्रह करना सहज नहीं है। प्रत्येक चित्रमें सामजस्य-सा मालूम पड़ता है, किन्तु ऊपर के मजलेमें शिल्पकारने जिस रीतिसे दृश्योका वर्णन किया है, नीचे के मजले में ठीक उसी रीतिसे नहीं किया गया है। दोनों मजलेमें मापसमें एक विराट पार्थक्य बोध होता है इस मजलेके दृश्योमें एकत्व मालूम पडता है। खुदी हुई मूर्तियों के बोचमें परस्पर सम्बन्ध भी प्रति स्पष्ट मालूम पड़ता है । मूत्तियो