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९. उड़ीसा की जैन-कला भुवनेश्वर से दक्षिण-पश्चिम दिशामें खण्डगिरि और उदयगिरि नामक दो छोटे-छोटे पहाड है । उनकी ऊँचाई क्रमश १२३ फोट और ११.फोट है। उदयगिरिके नीचे एक वैष्णव मठ भी है। ये पहाड छोटी-छोटी गुफामो से परिपूर्ण हैं । उदयगिरि व खण्डगिरिमे १६ तथा उनके निकटमें ही नीलगिरि नामक पहाड में ३ गुफाये देखनेको मिलती है । २० वी शताब्दीसे प्राय: १६ सौ वर्षों पूर्व ही अधिकाश गुफायें जैन सम्राट् खारवेल और उनके परिवार वालों के द्वारा निर्मित की गई थी। शवधर्मका केन्द्र स्थान भुवनेश्वर इसके इतने निकट है कि जैनधर्म किस प्रकार अपने स्थानमें जम सका, इस प्रश्न का लोगो के मनमें उठना स्वाभाविक ही है । ईसा पूर्व पहली शताब्दी में शवधर्म खूब सम्भव है कि कलिंग में नहीं फैला हो तथा ऐसा मालूम पडता है कि जैनधर्म की वृद्धि में रुकावट डालनेके लिये ब्राह्मण धर्म के परिपोषक वर्गने भुवनेश्वर को मन्तमें प्रचारके उपयुक्त स्थान समझकर ग्रहण किया हो ।
खण्डगिरि और उदयगिरि मादिमें स्थित गुफामोंका स्था. पत्य दक्षिण भारतमें वास्तव में एक दर्शनीय वस्तु है । इसीके कारण प्रतिवर्ष भारतसे सैकड़ो ऐतिहासिक विद्वानो तथा पर्यटको का यह आकर्षण केन्द्र रहा है । उदयगिरि की गुफामो के मध्यमें रानी हसपुर नामक गुफा हो सबसे बडी है । इसकी बनावट भी बडी सुन्दर है । इसको रानी गुफा भी कहा जाता
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