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________________ सत्यता पर! सत्यके अभाव ने हिंसक पशुको भौं महिंसक बना दिया । जैनधर्मकी हिंसा को इस कामें अच्छी तरह व्यक्त कर दिया गया है। "मय यह देखना है कि उत्कल के लोकाचार पर जैनधर्मका प्रभाव कहा तक पडा है । पहले जैनधर्म के कुछ मूल लक्षणों का विवेचन करतना प्रविश्यक होगा । कल्पवट इस धर्मकी एक विशिष्ट मान्यता है । सभ्यताकै मादिकाल में लोग कृषि बीवी मही थे और ईसी कल्पवृक्ष के प्रभाव से जीवनकी सारी माश्यकतामो की पूर्ति कर लेते थे। यह कल्पवृक्ष जब अन्तहित हो गों और लोगों को खाने पीने का प्रभाव हो गया तब भादि तीर्थकर ने लोगों को कृषि, पशुपालन तथा अन्यान्य उद्योगोकी शिक्षाऐ दी । कल्पवटकी पूजा जैनों का एक महान मनुष्ठान है। इसीके अनुकरण से पौराणिक हिन्दुओं ने कामधेनु की कल्पना की थी, इसी कामधेनु (सुरभि के लिये विश्वामित्र ने बशिष्टके आश्रम पर प्राक्रमण किया था जैनों के इस अनुष्ठानमें हिन्दुप्रो को प्रेरित किया जिससे प्रयागके कल्पवंट की कल्पना हुई। सिर्फ इतना ही नहीं, कल्पवटसे कूदकर प्राणत्याग करने को प्रथाका सम्बन्ध जैनो के प्रायोपवेशनमें प्राणत्याग करने के साथ सम्बन्धित है, हिन्दू पुराणों में कल्पवटके प्रभूत महात्म्य वर्णित है। इस सम्बन्ध में पुराणों मे कई प्रकार के पाख्यान भी मिलते हैं। जैनो के कल्पवट की धारणा ने हिंदू धर्म को कितना प्रभावित किया है, प्रयाग के कल्पवट की कथासे यह प्रमाणित होता है । इस कल्पवटके निकट कामना करके प्रसाध्य सौधन हो गया । उत्कल में भी कल्पवटका महत्व अत्यधिक है। यहां लोग बटवृक्षकी उपासना करते है । बटसे जो मोहर निकलता है उसे शिवकी जटासमझी जाती है । जैनों के प्रभाव ४मादि पुराण तीसरा अध्याय, ३० पृष्ठ ।
SR No.010143
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Shah
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1959
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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