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6 / सत्यार्थसून-निकव
इसमें गृपाचार्य नाम के साथ उनका दूसरा नाम उमास्वामि मुनीश्वर भी बतलाया गया है। आचार्य वादिराज ने भी अपने पार्श्वनाथ चरित्र में गृद्धपिच्छ नाम का उल्लेख किया है
आकाश में उड़ने की इच्छा करने वाले पक्षी जिस प्रकार अपने पखों का सहारा लेते है, उसी प्रकार मोक्षरूपी नगर को जाने के लिए भव्यलोग जिन मुनीश्वर का सहारा लेते हैं उन महामना अगणित गुणों के भण्डार स्वरूप गृद्धपिच्छ नामक मुनि महाराज के लिए मेरा सविनय नमस्कार है।
अतुच्छ गुणसम्पातं गृद्धपिच्छं नतोऽस्मि तम् । पक्षीकुर्वन्ति यं भव्या निर्वाणायोत्पत्तिष्णवः ॥
saureगोला के एक अभिलेख में गृद्धपिच्छ नाम की सार्थकता और आचार्य कुन्दकुन्द के वश में उनकी उत्पत्ति बतलाते हुए उनका उमास्वाति नाम भी दिया है। यथा -
एक अन्य शिलालेख में भी गृद्धपिच्छ का उल्लेख प्राप्त होता है -
मभूदुमास्थातिमुनिः पवित्रे वंशे तदीये सकलार्थवेदी, सूत्रीकृतं येन जिनप्रणीतं शास्त्रार्थजातं मुनिपुङ्गवेन । य प्राणि संरक्षणसावधानी बभार योगी किल गृद्धपक्षान्, तदा प्रभृत्यैव बुधा यमाहुराचार्य शब्दोत्तरगृद्धपिच्छम् ॥'
१. पार्श्वनाथ चरित्र 1/16 २. जैन
३. वही से, 43, पृ.43.
आचार्य कुन्दकुन्द के पवित्र वश मे सकलार्थ के ज्ञाता उमास्वाति मुनीश्वर हुए, ' जिन्होंने जिनप्रणीत द्वादाशागवाणी को सूत्रों में निबद्ध किया । इन आचार्य ने प्राणिरक्षा के हेतु गृद्धपिच्छो को धारण किया। इसी कारण वे गृद्धपिच्छाचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए । अभिलेखीय साक्ष्य मे गृद्धपिच्छाचार्य को श्रुतकेवलिदेशीय भी कहा गया है। इससे उनका आगम सम्बन्धी सातिशय ज्ञान भी प्रकट होता है।
भूदुमास्वातिमुनीश्वरोऽसावाचार्य शब्दो सरगृद्धपिच्छ । तदन्वये तत्सदृशोऽस्ति नान्यस्तात्कालिका शेषपदार्थवेदी ॥'
तस्वार्थसूत्र के रचयिता गृद्धपिच्छाचार्य का उल्लेख श्रवणबेलगोला के अभिलेख नम्बर 40, 42, 43, 47 और 50 में पाया जाता है। अभिलेख संख्या 105 और 108 में तस्वार्थसूत्र के कर्त्ता का नाम उमास्वाति भी आया है और गृद्धपिच्छ उनका दूसरा नाम बतलाया गया है। यथा
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श्रीमानुमास्थातिर पतीशस्तत्त्वार्थसून प्रकटीचकार, यन्मुक्तिमार्गाचरणोचतानां पावेयमन्यं भवति प्रजानाम् ।
प्रथम भाग, सं. 108, पृ. 210-11