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269 / कार्यका निकाय,
दिगम्बर जैन समाज सतना के गौरव पुरुष / महिलाएँ
1. स्व. श्री. पं. केवलचन्द जैन - आप उदारमना व्यक्ति थे । आपने वाराणसी में स्व. श्री पं. कैलाशचन्द जी के साथ स्याद्वाद महाविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। उदासीन वृत्ति से व्यापार में रहकर भी तात्त्विक विवेचन में संलग्न रहते थे ।
2. स्व. श्री पं. कस्तूरचन्द जी थी। आप वर्षो कोमा में रहे। ईसरी में
आपकी गणना पुरानी पीढी के सेवाभावी एवं धर्मनिष्ठ विद्वानों में की जाती, भी अनेक वर्षो तक अध्यापन कराया ।
3. स्व. श्री मोतीलाल जी - सीधे, सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। श्री महावीर दिगम्बर जैन प्राथमिक पाठशाला
के आप आजीवन मन्त्री रहे। सामाजिक कार्यो में आपका योगदान रहता था।
4. स्व. श्री सेठ दयाचन्द जी (दिगन सेठ) - सतना के प्रमुख व्यापारियों में आपकी गणना होती थी। मुम्बई के व्यापार जगत में भी अच्छी धाक थी। आपने सतना में जैन धर्मशाला का निर्माण कराया। जिला चिकित्सालय में एक वार्ड बनवाकर दान स्वरूप प्रदान किया। बैंक ऑफ बघेलखंड के गवर्नर रहे ।
5. स्व. सेठ धर्मदास जी - प्रमुख व्यापारी होने के साथ ही आपका धार्मिक जीवन अत्यन्त प्रभावी रहा। आपने लगभग 50 वर्षों तक निशुल्क औषधालय चलाया। सतना नगर पालिका के सदस्य तथा बैंक ऑफ बघेलखंड के गवर्नर रहे ।
7. स्व. श्री हुकमचन्द जैन 'नेताजी'
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के आप कर्मठ प्रचारक थे। भारतीय जनसंघ स्थापना के बाद आप विन्ध्यप्रदेश में संगठन स्तर पर मन्त्री और बाद में मध्यप्रदेश बनने पर सन् 1972 में सहायक मन्त्री के रूप में पदाधिकारी रहे। विभिन्न आन्दोलनों में भाग लेने के कारण अनेक बार जेल यात्रा की। 74 में मीसाबन्दी के रूप में भी जेल में रहे। भारतीय मजदूर सघ के प्रदेश उपाध्यक्ष के रूप में भी अपनी सेवाएँ प्रदान की। समाज के अनेक वर्षों तक मन्त्री रहे । मन्दिर का नवीनीकरण व सरस्वती भवन का निर्माण इन्हीं की देखरेख में सम्पन्न हुआ। जैन पाठशाला के संयोजक के रूप में जीवन के अन्तिम समय तक अपनी सेवाएँ प्रदान कीं ।
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7. स्व. श्रीमती रतीबाई जी - ब्राह्मी विद्या आश्रम कुण्डलपुर की संचालिका रहीं। आश्रम के सागर स्थानान्तरण होने पर तदनन्तर सागर की आजीवन संचालिका रहीं। आर्यिकाव्रत लेकर मुक्तागिरि में आचार्य श्री के सान्निध्य में सन् 1991 में समाधि लेते समय आपका नाम आर्यिका आत्मश्री माताजी दिया गया। आप पीपलवाला मरिवार से थीं ।
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8. परम पूज्य 105 श्री तीर्थमती माता जी सन् 1925 में ग्राम बद्दौन जिला छतरपुर के एक धर्मनिष्ठ परिवार पुतीबाई का जन्म हुआ। बड़े भाई दादा हुकमचन्द जी के सतना में आ जाने के कारण पुतीबाई जी का बचपन भी सतना में बीता। छोटी आयु में विवाह होने के कुछ ही दिनों के बाद पुत्तीबाई को वैधव्य का महान दुःख सहना पड़ा।
साहस, धर्म के प्रति निष्ठा, लगन और आत्मकल्याण की भावना से ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर पुत्तीबाई जी धार्मिक अध्ययन हेतु तत्कालीन जैन शिक्षण के लिये विख्यात आरा आश्रम (बिहार) गई। जहाँ पर उन्हें ब्र. चंदाबाई जैसी विदुषी से पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
जीवन में संघर्ष करते हुये धर्म के प्रति निष्ठा प्रगाढ़ होती चली गई। स्वयं का अध्ययन पूरा करने के बाद ब्र.