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-255 / तार्थसूत्र-निकव
अनजाने क्या दोष लगते बताते थे। जैसे उन्होंने बताया कि आप भोजन करते समय टी. वी. देखते हैं। मुनिश्री ने बताया कि पाँच इन्द्रियों का भोग भोगते हुए भोजन करना यह गलत है। शिविरार्थियों ने भोजन करते समय टी. वी. देखने का त्याग किया। ऐसे ही बहुत सारे नियम शिविरार्थियों ने मुनि श्री से लिये ।
आदरणीय ब. अशोक भैया जी ने सभी शिविरार्थियों को भी परिग्रह- परिमाणव्रत का महत्त्व बताकर प्रत्येक वस्तु की परिग्रह सीमा निर्धारित कर एक संकल्प पत्र भी भरवाया। सुबह शुद्ध भोजन की व्यवस्था में श्री प्रसन्न जैन (अम्बर) वालों का बड़ा ही सहयोग रहा। क्योंकि सभी शिविरार्थी अन्तराय पालकर भोजन करते थे। इसका विशेष ध्यान उन्होंने रखा और कोशिश रही कि किसी को अन्तराय नहीं आये। हालांकि यह चर्या मुनि की है लेकिन अभ्यास रूप में शिविरार्थियो ने इसका अनुसरण किया। भाई महावीर सेठी, पवन सलेहा और एक दो साधर्मी बन्धुओं ने तन-मन-धन से इस कार्य में पूर्ण रूपेण सहयोग दिया।
पर्युषण का वह अन्तिम दिन 27 सितम्बर 04 क्षमा याचना के रूप में पूर्ण हुआ। सभी ने क्षमा याचना की लेकिन 28 सितम्बर को किसी शिविरार्थी का घर जाने का मन नहीं हो रहा था। पूज्य मुनि श्री का आदेश भी था कि परिजन लेने न आयें तो मेरे साथ रहना चिन्ता की कोई बात नहीं। कितने दयालु, कितने उपकारी हमारे गुरु होते हैं। लेकिन इस मोहमाया रूपी ससार मे कोई किसी को जल्दी छोड़ने वाला नहीं। सबका साथ लगा है और यह भी डर था कि इन दस दिनों में लोगों का जो परिवर्तन हुआ है वह कही घर छोड़ न निकल जायें। 28 सितम्बर को सभी शिविरार्थियों के परिजन आये सभी ने कुछ न कुछ नियम लिया व अपने परिजनों के साथ बड़े गाजे-बाजे के साथ अपने निज घर को छोड़कर पर घर के लिये प्रस्थान किया । पारणा भी बडे धूम-धाम से हुई। जिन शिविरार्थियों या समाज के बन्धुओं ने 3 या 3 से अधिक उपवास किये थे मुनि श्री ने उन सभी को आशीर्वाद दिया ।
आज भी वह पल याद कर मन रोमाचित हो जाता है और ऐसा लगता है कि मैं भी मुनिश्री के साथ दीक्षा धारण कर उनके साथ ही जा रहूँ । इतजार है उस दिन का जब मैं भी मुनि दशा अगीकार कर वन-वन भ्रमण कर अपने जीवन का कल्याण करूँ । क्योंकि एक बात तो मन में दृढ हो गयी है कि जितना हो सके शास्त्रों का अध्ययन कर तत्त्व निर्णय करूँ व समाधिपूर्वक मरण करूँ । समाधिपूर्वक मरण से व्यक्ति 7-8 भव मे अपना कल्याण कर सकता है।
मैं भी अपना कल्याण करूँ, इस भावना से श्री 1008 नेमीनाथ भगवान् के चरणों में बारम्बार नमन करता हूँ।
प्रमोद जैन मयोजक, श्रावक संस्कार शिविर, (मे. अरिहन्त गारमेन्ट्स)