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249 / तत्वार्थसूत्र- निकष
सरस्वती भवन में हुआ। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में विभागाध्यक्ष श्री डॉ० कमलेशकुमार जैन इस सत्र के संयोजन का भार संभाल रहे थे। इस संगोष्ठी में श्री पं० निर्मल जैन सतना, श्री प्राचार्य निहालचन्द जैन बीना, श्री उमेशचन्द्र जैन, तथा श्री सुरेश जैन आई. ए. एस. ते अपने-अपने शोध आलेखों का वाचन किया। उपस्थित विद्वानों द्वारा की गई जिज्ञासाओं का समाधान विद्वान् लेखकों द्वारा होने के उपरान्त सत्र अध्यक्ष श्री पं० नरेन्द्रप्रकाश जी ने अपनी निष्पत्ति दी । तत्पश्चात् परम पूज्य मुनिराज श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज ने विद्वान वक्ताओं के शोध आलेखों की समीक्षा करते हुये बहुमूल्य सुझाव दिये।
तृतीय सत्र दिनांक 04-09-04 रात्रि 7 : 30 से 9:30 श्री सरस्वती भवन सतना
श्री पं0 रतनलाल जी बैनाड़ा आगरा की अध्यक्षता और श्री प्राचार्य निहालचन्द जी जैन के संचालन में तृतीय सत्र का शुभारम्भ रात्रि 7 : 30 पर श्री डॉ0 कमलेशकुमार जैन, वाराणसी के आलेख पठन से हुआ। पं. मूलचन्द जी लुहाड़िया के उद्बोधन के उपरान्त डॉ0 श्रेयान्सकुमार जैन ने अपने शोधालेख का वाचन किया। विद्वानों की शंकाओं का समाधान उपर्युक्त सुधी लेखकों द्वारा दिये जाने के उपरान्त सत्र अध्यक्ष श्री प0 रतनलाल जी बैनाड़ा ने अपने विचार व्यक्त किये।
चतुर्थ सत्र दिनांक 05-09-04 रविवार प्रातः 7 : 30 से 9: 30 श्री सरस्वती भवन सतना
गोष्ठी के द्वितीय दिवस का शुभारंभ श्री सरस्वती भवन में प्रातः 7 : 30 से प्रारम्भ चतुर्थ सत्र से हुआ । मगलाचरण व दीप प्रज्वलन के उपरान्त श्री डॉ० भागचन्द जैन 'भास्कर' की अध्यक्षता और डॉ0 श्रेयान्सकुमार जैन के संचालन में इस सत्र में डॉ0 फूलचन्द 'प्रेमी' श्री अनूपचन्द जैन एडवोकेट, श्री डॉ० अशोककुमार जैन, पं० शिवचरणलाल जैन ने अपने आलेखों के महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को प्रस्तुत किया, जिन पर व्यापक चर्चाएँ हुई। श्री डॉ० भागचन्द जैन 'भास्कर' के अध्यक्षीय उद्बोधन के उपरान्त पूज्य मुनि श्री ने सत्र क्रमांक 3 व वर्तमान सत्र में पठित शोध आलेखों की समीक्षा करते हुये उपयोगी सुझाव दिये ।
पंच सत्र दिनांक 05-09-04 मध्याह्न 1:30 से 5 : 00 श्री विद्यासागर सभागार, सतना
श्रीमती सरला चौधरी द्वारा मनमोहक मंगलाचरण की प्रस्तुति के साथ पंचम सत्र का शुभारंभ श्री विद्यासागर सभागार में मध्याह्न 1 : 30 से हुआ। सत्र की अध्यक्षता वयोवृद्ध विद्वान श्री पं० मूलचन्द जी लुहाडिया कर रहे थे, जबकि संचालन का भार श्री ब्र. राकेश भैया जी संभाल रहे थे। जिनभाषित पत्रिका के सम्पादक डॉ0 रतनचन्द जैन, श्री पं० रतनलाल बैनाड़ा, श्री नलिन के० शास्त्री दिल्ली तथा श्री प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जैन ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये। सुधी विद्वानों द्वारा प्रस्तुत जिज्ञासाओं का समाधान विद्वान लेखकों द्वारा होने के उपरान्त सत्र के अध्यक्ष श्री पं० मूलचन्द जी लुहाड़िया ने अपने विचार व्यक्त किये और अब बारी श्री परम पूज्य मुनि श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज की। रविवार का दिन होने के कारण उनके मंगल प्रवचन सुनने के लिये भीड़ उमड़ पड़ी श्री । पूज्य मुनि श्री ने भी सर्वप्रथम जनसामान्य के लिये अपने उपदेश दिये तत्पश्चात् उन्होंने आज की संगोष्ठी में विद्वान लेखकों के विचारों की सारगर्भित समीक्षा करते हुये आवश्यक सुझाव दिये 1