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________________ तस्वार्थमा निक/.246 महाराजा समुद्रविजय के साथ समधी भेंट की। तत्पश्चात् अपने होने वाले दामाद नेमिकुमार की भावभीनी अभ्यर्थना की। श्वेताम्बर जैन समाज. कसौधन वैश्य समाज. सर्व ब्राह्मण कल्याण महासंघ, भारतीय जनता पार्टी और व्यापारिक संघों ने श्री बारात का अपने-अपने ढंग से स्वागत किया। सचमुच में यह आयोजन सतना नगरवासियों के दिल में एक गहरी छाप छोड़ गया, जिसकी याद हमेशा बनी रहेगी। पुष्करिणी पार्क के पास स्थित श्री कैलाशचन्द जी के प्लॉट पर वाटरप्रूफ सुविधा युक्त एक विशाल अस्थायी पाण्डाल बनाया गया था, जिसका नाम श्री विद्यासागर सभागार रखा गया था। इंजीनियर श्री रमेशचन्द जैन ने बड़ी सूझबूझ और मेहनत के साथ इसका निर्माण सम्पन्न कराया। इसी के अन्दर जूनागढ़ की झाँकी बनाई गई थी। बारात पाईंचने को थी. पर मार्ग में ही बाड़े में बन्द पशओं के आर्तनाद ने नेमिकमार का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया। वे उनके दुःख से कातर हो उठे और तत्पर हो उठे उनकी पीड़ा दूर करने के लिये । राग की ओर उठे कदम विराग की ओर बढ़ गये। रथ से उतरकर नेमिकुमार सिरसावन की ओर जाते हुये दृष्टिगोचर हुये। उनके द्वारा परित्यक्त राजसी वैभव संसार की असारता की कहानी कहने को शेष वहीं पड़ा हुआ था। साक्षात् गणधर के रूप में विराजमान परम पूज्य मुनिराज श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज का प्रवचन प्रारम्भ हुआ । अपने मर्मस्पर्शी प्रवचन में उन्होंने नेमिनाथ के जीवन आदर्शों की चर्चा करते हुये भारतीय संस्कृति में उनके योगदान की बात कही। विद्यासागर सभागार ठसाठस भरा हुआ था। मुनि श्री के प्रवचन के उपरान्त आयोजकों के विनयपूर्ण आग्रह पर सभी उपस्थित जनसमूह ने श्री सरस्वती भवन में पधारकर शाम का भोजन ग्रहण किया। श्री प्रभात जैन और उनके साथियों ने बहुत सुन्दर व्यवस्था बना रखी थी। जिसकी सभी ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। दिनाँक 22-08-04 भगवान् पार्श्वनाथ निर्वाण दिवस । श्री सरस्वती भवन मे सम्मेदशिखर जी की अनुकृति बनाकर स्वर्णभद्रकूट पर भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान की गई थी। नीचे पाण्डुकशिला पर भी भगवान् पार्श्वनाथ विराजमान थे। आज के दिन अभिषेक से प्राप्त सम्पूर्ण धनराशि श्री सम्मेदाचल विकास समिति, मधवन को भेजने की घोषणा की गई। सिं. जयकुमार जैन, अमरपाटन वाले संयोजक - नेमिनाथ महोत्सव मे. अनुराग ट्रेडर्स, गाँधी चौक, सतना
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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