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________________ सत्वार्थसूत्र-निवाय / 244 दिनाँक 17-08-04 मेमिनाथ महोत्सव का प्रथम दिवस। प्रातः से ही उत्सव का माहौल। सर्वप्रथम जिन वन्दना के . उपरान्त समाज के बन्धुओं ने परम पूज्य मुनिश्री को श्रीफल भेंटकर चरणों में नमोऽस्तु कर उनका शुभाशीर्वाद प्राप्त . किया। तत्पश्चात् प्रतिष्ठाचार्य श्री ब्र0 अशोक भैया जी का यथायोग्य सम्मान कर उनसे इस महोत्सव व श्री पंचकल्याणक विधान का आचार्य पद स्वीकार करने का आग्रह सर्व समाज बन्धुओं ने किया । ध्वजारोहण के उपरान्त नेमिनाथ भगवान् का महामस्तकाभिषेक प्रारम्भ हुआ। श्री सुशीलकुमार जैन ने प्रथम कलश करने का सौभाग्य प्राप्त किया । इसके बाद क्रमश: श्री व्यस्त दिवाकर, श्री डॉ. राजकुमार जैन तथा श्री जितेन्द्र जैन ने अभिषेक कर अपने जीवन को धन्य किया । शान्तिद्वारा कलश करने का सौभाग्य श्री धन्यकुमार जैन व श्री प्रदीपकुमार जैन को प्राप्त हुआ । श्री मिनाथ वेदिका के सम्मुख कैमरा लगाया गया था। जिससे बाहर बैठे सभी पुरुष - महिलायें पर्दे पर अभिषेक को देख सकें । शाम को महाआरती का आयोजन था । आज की महाआरती करने का सौभाग्य खजुराहो ट्रान्सपोर्ट परिवार को प्राप्त हुआ था। एक सजे सजाये हाथी पर उनके परिवारजन बैठे हुये थे। उनके हाथ मे एक विशाल आरती थी। बैड बाजों के साथ समाज बन्धुओं की भारी भीड़ के बीच ये सभी मन्दिर परिक्रमा करते हुये मन्दिर जी के पूर्वी द्वार पर पहुँचे। पदाधिकारियों द्वारा उनकी आगवानी की गई। तत्पश्चात् श्री नेमिनाथ वेदिका सहित सभी वेदियों मे आरती कर सौभाग्यशाली परिवार श्री सरस्वती भवन में विराजमान अस्थायी जिनालय मे पहुँचा। यहाँ पर गीत-संगीत के साथ नृत्य करते हुये सभी समाज बन्धुओं ने श्री जी की आरती की। पूज्य गुरुदेव के समक्ष विनयपूर्वक आरती के उपरान्त महाआरती का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ । अब भीड़ सरस्वती भवन में उमड़ रही थी। पंचकल्याणक के दृश्यों की मचीय प्रस्तुति ही सास्कृतिक कार्यक्रम के रूप में थी । आज सुधर्मासभा और गर्भकल्याणक के पूर्व रूप की झांकी का प्रदर्शन किया गया। दिनाँक 18-08-04 प्रातः श्री नेमिनाथ भगवान् का महामस्तकाभिषेक । तत्पश्चात् श्री पचकल्याणक विधान और पूजन सम्पन्न हुई। ठीक 8-30 से पूज्य महाराज श्री के मगल प्रवचन। शाम को महाआरती का भव्य आयोजन । रात्रि में गर्भ कल्याणक के उत्तर रूप की प्रस्तुति । राजा समुद्रविजय द्वारा महारानी शिवादेवी द्वारा देखे गये मागलिक स्वप्नों के फल का वर्णन और देवियों द्वारा माता शिवादेवी की सेवा सुश्रूषा, आज की सास्कृतिक झाँकियों मे प्रमुख थी। दिनाँक 19-08-04 प्रातः पचकल्याणक विधान के अवसर पर जैसे ही प्रतिष्ठाचार्य जी द्वारा जन्मकल्याणक के सम्बन्ध में सूचना दी गई। सरस्वती भवन का कण-कण नृत्यातुर हो उठा। सौधर्म इन्द्र द्वारा अतीत में निष्पादित क्रियायें मानो सजीव हो उठीं। चूँकि जिनबिम्ब प्रतिष्ठा तो हो नहीं रही थी, इसलिये एक बालक को नवजात शिशु के रूप मे प्रस्तुत कर शेष झाँकियाँ प्रस्तुत की गई। रात्रि में पालना और बालक नेमिकुमार की बालक्रीडायें मन-मुग्ध करने वाली रहीं । महामस्तकाभिषेक पूज्य मुनि श्री के प्रवचन और शाम को महाआरती का आयोजन विगत दिनों की भाँति ही सम्पन्न हुये । दिनाँक 20-08-04 प्रात: और सायंकालीन कार्यक्रम पूर्वव्यवस्था के अनुसार हुये। रात्रि में होने वाली सांस्कृतिक झांकी में आज महाराज समुद्रविजय के दरबार में नेमिकुमार की शादी की चिन्ता हो रही थी। उधर जूनागढ़ के महाराज उग्रसेन भी अपनी बेटी के लिये योग्य वर की तलाश थे। राजपुरोहितों ने खोजबीन कर अपने-अपने स्वामियों को योग्य
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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