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तस्वार्थका-विका/242
ढनगन सेठ का नाम आज भी ग्राम के वृद्धों को याद है। अवश्य ही समाज के कुछ अन्य लोग भी रहे होंगे, पर उनके नाम किसी स्रोत से ज्ञात नहीं हो सके। मेरी माताजी श्रीमती बेटीबाई आय 99 वर्ष, श्री रामदुलारे काछी आयु 90 वर्ष तथा श्री रामदयाल गुप्ता आयु 80 वर्ष ये तीनों इससे अधिक कुछ बता नहीं पाये । यह पता चला कि मूर्ति टेकरी के पास से सड़क तक गाड़ी में आई। नाले में गाड़ी रुक गई तब रात्रि विश्राम करना पड़ा और सुबह पूजन करके ही आगे बढ़ पाये । गाड़ी में बैल नहीं लगाये गये। मनुष्यों ने ही खींचकर भगवान् को गाँव से निकाला । सतना में भी मन्दिर का पूर्वी द्वार उस समय जैसा था, उसमें से मूर्ति का प्रवेश सम्भव नहीं था अत: पिछवाड़े पश्चिम की ओर से दीवार तोड़कर भगवान को स्थापित किया गया और उनके पीछे पुन: दीवार चिन दी गई। जिस साल मूर्ति उठकर आई उसी साल, मूर्ति उठने के बाद मेरे बडे भाई का जन्म हुआ। उनका जन्मकाल बही में संवत् 1990 लिखा है । अत: इस तिथि को प्रामाणिक माना जा सकता है। तब से भगवान् शान्तिनाथ अपने भक्तों की कामना-पूर्ति का वरदान बरसाते हुए सतना के मन्दिर में खड़े हैं। मऊ से ही एक इनसे कुछ छोटी प्रतिमा शायद बाद में रोवा लाई गई। ग्राम में कुछ शिल्पावशेष अभी भी पडे हैं, जिन्हें एकत्र करके ग्राम पंचायत ने एक स्थानीय संग्रहालय बना दिया है।
प्रो. सुभाष जैन वाणिज्य महाविद्यालय, सतना
सागर चरण परवारे
मुनिश्री प्रात: 5:30/6:00 बजे नीहारचर्या के लिये जाते। जैन युवकों का एक समूह नियमित रूप से उनके साथ जाता। पर इस समूह में सबसे आगे रहते डॉ. भोजवानी (होम्योपैथिक चिकित्सिक), श्री अतुल दुबे (इनकमटेक्स सलाहकार) और श्री अजय द्विवेदी (एडवोकेट)। चर्या से लौटकर मुनि कक्ष में प्रवेश करते तो श्री अतुल दुबे उनके पैर धुलाते और नेपकिन से पूज्य मुनि श्री के चरण पौंछते। पूरे वर्षावास काल में एक दिन भी इस क्रम में अन्तर नहीं पड़ा।