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________________ बन्ध ___प्रायोगि बन्ध प्रायोगिक वैससिक अजीव जीवाजीव सादि अनादि (लाख-लकड़ी आदि का) (कर्म-नोकर्म आदि का) (पुद्गलों का बन्ध) (धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों का बन्ध) परमाणुओं में परस्पर बन्ध कैसे होता है इस सन्दर्भ में उमास्वामी का कहना है कि "स्निग्धरूझत्वादबन्ध:"" अर्थात स्निग्ध और रूक्षत्व गुणों के कारण बन्ध होता है। परमाणु में दो स्पर्श शीत और उष्ण में से एक तथा स्निग्ध और क्ष में से एक पाये जाते हैं। इन्हीं के कारण बन्ध होता है और स्कन्धों की उत्पत्ति होती है। स्निग्धत्व का अर्थ चिकनापन और रूक्षत्व का अर्थ रूखापन है। वैज्ञानिक परिभाषा में इन्हें पाजिटिव और निगेटिव कहा जा सकता है। आज विद्युत की उत्पत्ति में पाजिटिव और निगेटिव को जो कारण माना जाता है उसका मूल इस सूत्र में देखा जा सकता है। यह बन्ध तीन रूपों में होता है - स्निग्ध + स्निग्ध परमाणुओं का रूक्ष + रूक्ष परमाणुओं का स्निग्ध + रूक्ष परमाणुओं का तत्त्वार्थसूत्र के "धिकादिगुणानां तु" सूत्र के अनुसार जिन परमाणुओं में बन्ध होता है उनमें चाहे सदृश हों चाहे विसदृश, सर्वत्र दो शक्त्यंशों (गुणों) का अन्तर होना चाहिए। समान शक्त्यश होने पर बन्ध नहीं होता। साथ ही जघन्यगुण वाले परमाणुओं का बन्ध नहीं होता। भाव यह है कि यदि एक परमाणु में एक ही शक्त्यंश है तो उसका दो का अन्तर होने पर भी 3 शक्त्यंश वाले परमाणु के साथ बन्ध नहीं होगा । बन्ध होने पर अधिक अंश वाला परमाणु हीन अश वाले परमाणुओं को अपने में मिला लेता है। सूक्ष्मत्व - सूक्ष्म भी अन्त्य और आपेक्षिक के भेद से दो प्रकार का है । अन्त्य सूक्ष्म परमाणुओं में तथा आपेक्षिक सूक्ष्मत्व बेल, आवला आदि में होता है। स्थौल्य- यह भी अन्त्य और आपेक्षिक के भेद से दो प्रकार का है। अन्त्य स्थौल्य लोक रूप महास्कन्ध मे होता है तथा आपेक्षिक स्थौल्य बेर, आंवला आदि में होता है। संस्थान-संस्थान का अर्थ है आकृति । यह इत्थंलक्षण और अनित्यं लक्षण भेद रूप दो प्रकार की है। कलश आदि का आकार गोल, चतुष्कोण, त्रिकोण आदि रूपों को इत्थंलक्षण कहा जा सकता है तथा जो आकृति शब्दों में नहीं कही - १.तस्वार्थ सूत्र 5/31 २. बही, 5/30 ३. गुणसाम्मे सवृशानाम्, तत्वार्थसूत्र 5/35 ४. न जपम्यगुणानाम्, तत्वार्थसूत्र 5/34 ५. बन्वेऽधिको पारिणामिको च, तत्त्वार्थसूत्र 5/37 ६. तत्वार्थसार, 3/6s ७. वही, 3/66
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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