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अर्थात् संसार में प्रस एवं स्वावर दो प्रकार के जीव हैं। पृथ्वीकायिक से लेकर वनस्पतिकायिक तक के जीव स्थावर हैं। वर्तमान में विज्ञान केवल बस एवं वनस्पतिकायिकों को ही जीव मानता है।
इन वनस्पतिकायिक जीवों में मूल से उत्पन्न होने वाले अदरक, हल्दी आदि, अग्रबीज - कलम से उत्पन्न होने वाले गुलाब भादि, पर्व से उत्पन्न होने वाले गने आदि, कन्द से उत्पन्न सूरण आदि, स्कन्ध से उत्पन्न होने वाले डाक आदि, बीज से उत्पन्न होने वाले गेंह, चना आदि हैं। तथा सम्मूर्छन, अपने आप उत्पन्न होने वाली घास आदि वनस्पतिकायिक प्रत्येक तथा साधारण दोनों प्रकार के होते हैं। जैसा कि बायोटेक्नालॉजी के सन्दर्भ में वर्णित है कि इन पौधों की प्रत्येक कोशिका में वृद्धि करने एवं अपने जैसा प्रतिरूपी बनाने की क्षमता होती है जिसे टोटीपोटेन्सी कहा जाता है।
बनस्यात्वन्तानामेकम् ॥2॥ अर्थात् वनस्पतिकायिक तक के जीवों के एक अर्थात् प्रथम इन्द्रिय होती है। जन्म के भेदों में कहा गया है -
सम्मुनगापपादा जन्म ॥31॥ अर्थात् सम्पूर्ण विश्व के अनन्तानन्त जीव मुख्यतः तीनरूप से जन्म ग्रहण करते है - 1. सम्मूर्च्छन, 2. गर्भ एवं 3. उपपाद।
बायोटेक्नालॉजी के सिद्धान्तों के आधार पर सम्मूर्च्छन एव गर्भ जन्म की व्याख्या की जा सकती है। सम्मूर्छन जन्म का अभिप्राय है कि चारों ओर से पुद्गलों का ग्रहण कर अवयवों की रचना होना । एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक के जीवों का जन्म सम्मर्छन ही होता है। जैसा कि पूर्व में बताया गया है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी प्रत्येक कोशिका स्वय में समस्त गणों से परिपर्ण होती है एवं अपने जैसी शरीर रचना बनाने में सक्षम होती है। जैव अभियान्त्रिकी विधियों से पौधों के किसी भी भाग की कोशिका लेकर उसे उचित माध्यम में रखकर उसका संवर्धन किया जाता है एव कुछ समय पश्चात् ही ऐसी अनेक कोशिकाओ का समूह बन जाता है जिसे 'केलस' कहा जाता है। इसी केलस से नया पौधा तैयार हो जाता है। कई प्रकार के जन्तुओं को भी इसी तकनीक से विकसित किया जा चुका है। सन् 1952 मे मेंढक के तीस क्लोन तैयार किये गये। सत्तर के दशक में खरगोशों तथा चूहों के क्लोन तैयार किये गये एवं नब्बे के दशक में भेड़ का क्लोन तैयार कर लिया गया। एडिनवर्ग (स्काटलैण्ड) के रोसलिन इन्स्टीटयूट में वैज्ञानिक डा. इआन क्लिमर ने सन् 1996 में 'डॉली' के रूप मे एक पूर्ण स्वस्थ भेड़ का क्लोन तैयार कर दिया।
पशुओं के क्लोन तैयार करने की प्रक्रिया में सर्वप्रथम मादा के शरीर में से एक स्वस्थ अण्डाणु लिया जाता है इस अण्डाणु में से न्यूक्लिअस निकाल कर कोशिका को सुरक्षित रख लिया जाता है। जिस जीव का क्लोन तैयार करना होता है उसकी त्वचा की कोशिका लेकर उसमें से न्यूक्लिअस को अलग कर लिया जाता है। इस जीव को हम DonorParent कहते हैं। इस न्यूक्लियस के पूर्व में सुरक्षित रखी कोशिका (न्यूक्लियसविहीन) में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। इस प्रकार एक नयी कोशिका तैयार हो जाती है। यह मयी कोशिका द्विगुणन द्वारा भ्रूण में परिवर्तित हो जाती है। इस भ्रूण को किसीमादा के पक्षिय में स्थित कर दिया जाता है जहाँ वह सामान्य रूप से विकसित होने लगता है। इस भ्रूण द्वारा उत्पन्न नवजात शिशु में गुणसूत्र (Chromotoms) वेही होते हैं जो कि डोगर पेरेन्ट के होते हैं। इसकी आकृति भी डोनर पेरेन्ट जैसी ही होती है एवं लिंग भी वही होता है।