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यदि दो जोडी कपडोंके स्थानपर यदि कोई पचास जोडी कपडे रखने लग जाय, तो इससे उसे दूसरे चौबीस व्यक्तियोंको वस्नहोन करना पड़ेगा। अत किसी भी वस्तुका सीमित आवश्यकतासे अधिक सचय समाज-हितको दष्टिसे अनुचित है।
सस्ता समझकर चोरोके द्वारा लाई गई वस्तुओको खरीदना, चोरीका मार्ग बतलाना, मनजान व्यक्तियोसे अधिक मूल्य लेना, अधिक मूल्यकी वस्तुओ मे कम मूल्यवाली वस्तुओको मिलाकर बेचना चोरी है। प्राय. देखा जाता है कि दूध बेचनेवाले व्यक्ति दूवमे पानी डालकर बेचते हैं । कपडा धोनेके सोडेमे चूना मिलाया जाता है। इसी प्रकार अन्य खाद्यसामग्रियोमे लोभवश अशुद्ध और कम मूल्यके पदार्थ मिलाकर बेचना नितान्त वर्ण्य है। समाजधर्मकी सातवीं सोढो भोगवासना-नियन्त्रण __ यो तो अहिंसक आचरणके अन्तर्गत समाजोपयोगी सभी नियन्त्रण सम्मिलित हो जाते है, पर स्पष्टरूपसे विचार करनेके हेतु वासना-नियन्त्रण या ब्रह्मचर्यभावनाका विश्लेषण आवश्यक है। यह आत्माकी आन्तरिक शक्ति है और इसके द्वारा सामाजिक क्षमताओकी वृद्धि की जाती है। वास्तवमे ब्रह्मचर्यकी साधना वैयक्तिक और सामाजिक दोनो ही जीवनोके लिए एक उपयोगी कला है। यह आचार-विचार और व्यवहारको बदलनेकी साधना है। इसके द्वारा जीवन सुन्दर, सुन्दरतर और सुन्दरतम बनता है। शारीरिक सौन्दर्यकी अपेक्षा आचरणका यह सौन्दर्य सहस्रगुणा श्रेष्ठ है । यह केवल व्यक्तिके जीवनके लिए ही सुखप्रद नही, अपितु समाजके कोटि-कोटि मानवोके लिए उपादेय है ।
आचरण व्यक्तिको श्रेष्ठता और निकृष्टताका मापक यन्त्र है । इसीके द्वारा जीवनकी उच्चता और उसके उच्चतम रहन-सहनके साधन अभिव्यक्त होते हैं। मनुष्यके आचार-विचार और व्यवहारसे बढकर कोई दूसरा प्रमाणपत्र नही, है, जो उसके जीवनको सच्चाईको प्रमाणित कर सके।
आचरणका पतन जीवनका पतन है और आचरणकी उच्चता जीवनकी उच्चता है। यदि रूढिवादवश किसी व्यक्तिका जन्म नीचकुलमे मान भी लिया जाय, तो इतने मात्रसे वह अपवित्र नही माना जा सकता। पतित वह है जिसका आचार-विचार निकृष्ट है और जो दिन-रात भोग-वासनामे डूबा रहता है। जो कृत्रिम विलासिताके साधनोका उपयोगकर अपने सौन्दर्यकी कृत्रिमरूपमे वृद्धि करना चाहते है उनके जीवनमे विलासिता तो बढती ही है, कामविकार भी उद्दीप्त होते हैं, जिसके फलस्वरूप समाज भीतर-ही-भीतर खोखला होता जाता है।
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना . ५९१