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जन पूजा पाठ मप्रह
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जय क्षायिक गुण सम्यक्त्व लीन, जय केवलज्ञान सुगुण नवीन । जय लोकालग प्रकाशवान, यह केवल अतिशय हिये जान ॥ जय सर्व तत्व दरसे महान, सो दर्शन गुण तोजो महान । जय वोर्य अनन्तो है अपार, जाकी पटतर दूजो न सार ।। जय सूक्षमता गुण हिये धार, सव ज्ञेय लत्यो एकहि सुवार । इक सिद्ध मे सिद्ध अनन्त जान, अपनी-अपनी सत्ता प्रमाण ।। अवगाहन गुण अतिशय विशाल, तिनके पद बन्दे नमित भाल । कछु घाटि न बाधि बहे प्रमाण, गुण अगुरु लघु धारै महान ।। जय वाघा रहित विराजमान, सो अव्यावाध कह्यो बखान । ये वसुगुण है व्यवहार सन्त, निश्चय जिनवर भाषे अनन्त ।। सब सिद्धान के गुण कहे गाय, इ. गुणकरि शोभित है जिनाय । तिनको भविजन मनवचन काय, पूजत वसु विधि अति हर्ष लाय ।। सुरपति फणपति की महान, दलि हरि प्रतिहरि मनमथ सुजान । गणपति मुनिति मिल घरत ध्यान, जय सिद्ध निरोगति नग धान ॥
सोरा।। ऐसे सिद्ध महान. तुम गुण नहिमा अगम है। वरण को बखान, तुच्छ बुद्धि भवि लाला ॥ ॐ ही रणमा सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिभ्यो महाघ निर्वपापीति स्वाहा ।
दोहा। करता की यह उिनती, सुनो सिद्ध भगवान । मोहि बुलाओ आप ढिग, यही अरज उर आन ॥
इत्याशीर्वाद ।