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जन पूजा पाठ सप्रह
मुक्ताफल की उनहार, अक्षत धोय धरे। अक्षय पद प्रापति जान, पुण्य भण्डार भरे ।। जग में सु पदारथ सार, ते सब दरसावै ।
सो सम्यग्दर्शन सार, यह गुण मन भावै ॥ ३॥ के हो णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठि-यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ॥३॥
सुन्दर सु गुलाब अनूप, फूल अनेक कहे । श्री सिद्धन पूजत भूप, बहुविधि पुण्य लहे ।। तहां वीर्य अनन्तो सार, यह गुण मनमानो।
ससार समुद्रतै पार, तारक प्रभु जानो ॥ ४ ॥ ॐ ही णमो सिद्धाण सिद्धपरमैष्ठि-यो कामवाणविध्वसनाय पुष्प निर्वामीति स्वाहा ॥४॥
फेनी गोजा पकवान, मोदक सरस बने। पूजौ श्री सिद्ध महान्, भूखविथा जु हने ॥ झलके सब एकहिवार, ज्ञेय कहे जितने ।
यह सूक्षमता गुरण सार, सिद्धन के सु तने ॥ ५॥ __ही णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठि-यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥५॥
दीपक को ज्योति जगाय, सिद्धन को पूजो । करि आरति सनमुख जाय, निरमल पद हूजो ।। कुछ घाटि न वाढि प्रमाण, अगुरुलघु गुरण राख्यो ।
हम शोस नवावत प्राय, तुम गुरण मुख भाखो ॥६॥ ॐ ही गमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठि-यो मोहान्धकार विनाशनाय दीप निर्वपामोति स्वाहा ॥६,