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सहिष्णुता
पारिवारिक दायित्वों के निर्वाहके लिए सहिष्णुता अत्यावश्यक है। परिवारमें रहकर व्यक्ति सहिष्णु न बने ओर छोटो-सी छोटी बातके लिए उत्तावला हो जाय, तो परिवारमे सुख-शान्ति नही रह सकती । सहिष्णु व्यक्ति शान्तभावसे परिवारके अन्य सदस्योंकी वातो ओर व्यवहारोको सहन कर लेता है, जिसके फलस्वरूप परिवार मे शान्ति और सुख सर्वदा प्रतिष्ठित रहता है । अभ्युदय और नि यसको प्राप्ति सहनशीलता द्वारा ही सम्भव है । जो परिवारमे सभी प्रकारको समृद्धिका इच्छुक है तथा इस समृद्धिके द्वारा लोकव्यवहारको सफररूपमे संचालित करना चाहता है ऐसा व्यक्ति समाज और परिवारका हित नही कर सकता है | विकारी मन शरीर और इन्द्रियोंपर अधिकार प्राप्त करनेके स्थान पर उनके वश होकर काम करता है, जिससे सहिष्णुताको शक्ति घटती है । जिसने आत्मालोचन आरम्भ कर दिया है भोर जो स्वय अपनी चुराईयोका अवलोकन करता है वह समाजमे शान्तिस्थापनका प्रयास करता है । सहिष्णुताका कृत्रिम भावुकता नही और न अन्याय और अत्याचारोको प्रश्रय देना हो है, किन्तु अपनी आत्मिक शक्तिका इतना विकास करना है, जिससे व्यक्ति, समाज और परिवार निष्पक्ष जीवन व्यतीत कर सके। पूर्वाग्रहके कारण असहिष्णुता उत्पन्न होती है, जिससे सत्यका निर्णय नही होता । जो शान्तचित्त है, जिसकी वासनाएँ सयमित हो गई है और जिसमे निष्पक्षता जागृत हो गई है वही व्यक्ति सहिष्णु या सहनशील हो सकता है । सहनशील या सहिष्णु होनेके लिए निम्नलिखित गुण अपेक्षित हैं
१ दृटता ।
२. आत्मनिर्भता ।
३ निष्पक्षता ।
४. विवेकशीलता ।
५ कर्तव्यकर्मके प्रति निष्ठा ।
अनुशासन
मानवताके भव्य भवनका निर्माण अनुशासनद्वारा ही सम्पन्न किया जा सकता है । वास्तवमे जहाँ अनुशासन है, वही अहिंसा है । और जहाँ अनुशासनहोनता है वही हिंसा है । पारिवारिक और सामाजिक जीवनका विनाश हिंसा द्वारा होता है । यदि धर्मं मनुष्यके हृदयको क्रूरताको दूर कर दे और अहिंसा द्वारा उसका अन्तकरण निर्मल हो जाय तो जीवनमे सहिष्णुताकी साधना सर हो जाती है । वास्तवमे अनुशासित जीवन ही समाजके लिए उपयोगी
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना . ५६७