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________________ ४ जीवनके प्रति निरामा। ५ धमके प्रति बनाया। चापा और अनुमानगो गोगका नाम नंगनिष्ठा है। व्यवस्थाको सहायतासे पाय घसा मान ली है और किमी प्रकारका वितण्डावाद उत्पन्न नहीं होता किम जोमन अनुभागनतोगता और अराजाता है, वे लापरवाह बोर अपने दिनानोमे अगापित होते। पतंयनिष्ठापो जागृत मारलेगाने पार करय - १ तत्परता-माना वीर यस्तारियता। २. गुखना-उन्मलगेय नमिन नियमों के प्रति भाग्या-महिमाके नाधार पर गल्योगपत। ३. उपयोगिना-छोटे-बड़े सभी पार्योगो नमान महत्व देकर उनकी उपयोगिताको प्रवपासा। ४ विगदना-गठन और प्रशासनको गोग्यता, मरे गब्दोमे विचारो और कापच्यापारमे अपस्यापी बार गायानी । विश्लेषण जोर सश्लेषणका एकोभूत सामन्य। वस्तुन मन्यो या अमिका निपांगन ही मनुष्यका कर्तव्य है। अतएव मानात्मक, नियामक गैर भापारमग निविप ज्यवहारको अभिव्यनि फतव्यसोमा है । फनंग विपिनियात्मपा उमम प्रकार होते हैं। तुम प्रवृत्तियोका सम्पादन विध्यात्मक और बगुन प्रतियोगा त्याग निषेधात्मक कर्तव्य हैं। __कनंव्यके म्यरूपका निवारण अहिनात्मक व्यवहार द्वारा सभव है। मातापिता, पुन-पुत्री, भाई-बहन और पति-पली आदिको पारस्परिक कर्तव्योका अवधारण भावनात्मक विकासको प्ररिया द्वाग होता है और यह अहिंसाका ही सामाजिक रूप है। मानव हृदयको आन्तरिक सवेदनाको व्यापक प्रगति ही तो बहिमा है और यही परिवार, समाज और राष्ट्रफे उद्भव एव विकासका मूल है। यह मत्य है कि उक्त प्रक्रियाम रागात्मक भावनाका भी एक बहुत बडा वग है, पर यह बा मामाजिक गतिविधिमे बाधक नहीं होता। हिमा मानवको हिमामे मुक्त करती है। वैर, वैमनस्य-द्वेप, कलह, घृणा, इयो, दुमकल्प, दुर्वचन, क्रोध, अहंकार, दम, लोभ, शोषण, दमन आदि जितनी भी व्यक्ति और समाजको ध्वसारमक प्रवृत्तियां है, विकृतियाँ है, वे सब हिंसाके रूप हैं। मानव-मन हिंसाके विविध प्रहारोंसे निरन्तर घायल होता रहता है। अत क्रोधको क्रोधसे नही, क्षमासे, अहकारको अहकारसे नही, विनय-नम्रतामे, दम्भको दम्भसे, नही, सरलता और निश्छलतासे, लोभको तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना . ५५९
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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