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________________ 1 है । ज्ञान, शान्ति, सुख और सन्तोषके हेतु संयमका पालन परिवारमें भी आवश्यक है । वही परिवार सुखी रह सकता है, जिस परिवारके सदस्योने अपनी आशाओ और तृष्णाओको नियंत्रित कर लिया है। ये आशाएँ विषयसामग्रीके द्वारा कभी शान्त नही होती हैं। जिस प्रकार जलती हुई अग्निमे जितना अधिक ईंधन डालते जाये, अग्नि उत्तरोत्तर बढती ही जायगी । यही स्थिति विषयभोगोकी अभिलाषाकी है । समस्याएँ परिस्थिति, काल एव वातावरणके अनुसार उत्पन्न होती है और इन समस्याओ के समाधान या निराकरण भी प्राप्त किये जा सकते है, पर इच्छाओकी उत्पत्ति तो अमर्यादित रूपमे होती है । फलत उन इच्छाओको भोग द्वारा तो कभी भी पूर्ण नही किया जा सकता है, पर सयम या नियत्रण द्वारा उन्हे सीमित किया जा सकता है। परिवारके कर्तव्य दया, दान और दमन - इन्द्रियसयमकी त्रिवेणी रूपये स्वीकृत हैं । यही संस्कृतिका स्थूल रूप है । प्रत्येक प्राणी प्रति दया करना, शक्ति अनुसार दान देना एव यथासामर्थ्य नियत्रित भोगोका भोग करना परिवारको आदर्श मर्यादामे सम्मिलित है । क्रूरतासे मनुष्य सुख नही प्राप्त कर सकता और न सग्रहवृत्तिके द्वारा उसे शान्ति ही मिल सकती है । भोगमे मनुष्यको चैन नही । अत' दमन या सयमको आवश्यकता है। परिवारको सुख-शान्तिके लिए भोग और त्याग दोनोकी आवश्यकता है | शरीरके लिए भोग अपेक्षित है तो आत्मकल्याणके लिए त्याग । भोग और योगका सतुलन ही स्वस्थ परिवारका धरातल है । परिवारको सुखी करने के लिए दया, ममता, दान और सयम परम आवश्यक है। परिवारको सुगठित करनेवाले सात गुण है -१ प्रेम, २. पारस्परिक विश्वास, ३ सेवाभावना, ४. श्रम, ५ कर्त्तव्यनिष्ठा, ७ सहिष्णुता, ७ और अनुशासनप्रवृत्ति । प्रेम प्रेम समाजका मानवीय तत्त्व है । इसके द्वारा जीवन-मन्दिरका निर्माण होता है । प्रेमके द्वारा हम आध्यात्मिक वास्तविकताका सृजन करते हैं और व्यक्तियोके रूपमे अपनी भवितव्यताका विकास करते है । शारीरिक आनन्दके साथ मनकी प्रसन्नता और आत्मिक आनन्दका सृजन भी प्रेमसे ही होता है । प्रेम आत्माकी पुकार हे । प्रेममे आत्मसमर्पणका भाव रहता है और वह प्रतिदानमे कुछ नही चाहता । इसमे किसी भी प्रकारका दुराव या प्रतिबन्ध नही रहता । यह भारी कामको हल्का कर देता है । प्रेमवश व्यक्ति बडे-बडे बोझको बिना भारका अनुभव किये ढोता है और श्रम या थकावटका अनुभव नही करता है । ५५४ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य - परम्परा
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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