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________________ आर्त्तध्यान | अनिष्ट पदार्थोके सयोग हो जानेपर उस अनिष्टको दूर करनेके लिए बार-बार चिन्तन करना अनिष्ट सयोगजन्य आर्त्तध्यान है। स्त्री, पुत्र, घन, धान्य आदि इष्ट पदार्थोके वियुक्त हो जानेपर उनकी प्राप्तिके लिए बार-बार चिन्तन करना इष्टवियोगजन्य आर्तध्यान है । रोगके होने पर अधीर हो जाना, यह रोग मुझे बहुत कष्ट दे रहा है, कब दूर होगा, इस प्रकार सदा रोगजन्य दुखका विचार करते रहना तीसरा आर्त्तध्यान है । भविष्यत्कालमे भोगोकी प्राप्तिकी आकाक्षाको मनमे बार-बार लाना निदानज आर्त्तध्यान है । रौद्रध्यान : स्वरूप और मेद रुद्रका अर्थ क्रूर परिणाम है। जो क्रूर परिणामोके निमित्तसे होता है, वह रौद्रध्यान है । रौद्रध्यानके निमित्तकी अपेक्षा चार भेद है - १. हिसानन्द रौद्रध्यान, २ मृषानन्द रौद्रध्यान, ३. चोर्यानन्द रौद्रध्यान और ४. विषयसरक्षण रौद्रध्यान । जीवोके समूहको अपने तथा अन्य द्वारा मारे जानेपर, पीडित किये जानेपर एव कष्ट पहुंचाये जानेपर जो चिन्तन किया जाता है या हर्ष मनाया जाता है उसे हिंसानन्द रौद्रव्यान कहा जाता है । यह ध्यान निर्दयी, क्रोधी मानी, कुशीलसेवी नास्तिक एव उद्दीप्तकषायवालेको होता है । शत्रुसे बदला लेनेका चिन्तन करना, युद्धमे प्राणघात किये गये दृश्यका चिन्तन करना एवं किसीको मारने-पीटने कष्ट पहुँचाने आदिके उपायोका चिन्तन करना भी हिसानन्द रौद्रध्यानके अन्तर्गत है । झूठी कल्पनाओ के समूह से पापरूपी मैलसे मलिनचित्त होकर जो कुछ चिन्तन किया जाता है, वह मृषानन्द रौद्रध्यान है । इस ध्यानको करनेवाला व्यक्ति नाना प्रकार के झूठे सकल्प-विकल्पकर आनन्दानुभूति प्राप्त करता रहता है। चोरी करनेकी युक्तियाँ सोचते रहना, परधन या सुन्दर वस्तुको हड़पनेकी दिन-रात चिन्ता करते रहना चीर्यानन्द नामक रौद्रध्यान है । सासारिक विषय भोगनेके हेतु चिन्तन करना, विषयभोगकी सामग्री एकत्र करनेके लिए विचार करना एव धन-सम्पत्ति आदि प्राप्त करनेके साधनोका चिन्तन करना विषयसरक्षणनामक रौद्रध्यान है । आ और रौद्र दोनो ही ध्यान आत्मकल्याण मे बाधक है । इनसे आत्मस्वरूप आच्छादित हो जाता है तथा स्वपरिणति लुप्त होकर परपरिणतिकी प्राप्ति हो जाती है । ये दोनो ध्यान दुर्घ्यान कहलाते हैं और दुर्गंतिके कारण हैं । इनका आत्मकल्याण से कुछ भी सम्बन्ध नही है । धर्मध्यान : स्वरूप और भेद शुभ राग और सदाचार सम्बन्धी चिन्तन करना धर्मध्यान है । धर्मध्यान 1 , तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : ५३९
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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