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व्रत कहते है। जितने समय तक व्रती सामायिक करता है, उतने समय तक वह महाव्रतीके समान हो जाता है । समभाव मा शान्तिको प्राप्तिके लिए सामायिक किया जाता है । सामायिकततके निम्नलिखित पाँच अतिचार हैं-
१ कायदुष्प्रणिधान - सामायिक करते समय हाथ, पैर आदि शरीरके अवयवोको निश्चल न रखना, नोदका सोका लेना ।
२. वचनदुष्प्रणिधान -मामायिक करते समय गुनगुनाने लगना ।
३. मनोदुष्प्रणिधान मनमे संकल्प-विकल्प उत्पन्न करना एव मनको गृहस्थोके कार्य मे फँसाना ।
४. अनादर-सामायिकमे उत्साह न करना ।
५ स्मृत्यनुपस्थान - एकाग्रता न होनेसे सामायिकको स्मृति न रहना । प्रोषधोपवास
पांच इन्द्रियां अपने-अपने विषयने निवृत्त होकर उपवासी - नियन्त्रित रहे, उसे उपवास कहते है । प्रोषध अर्थात् पर्वके दिन उपवास करना प्रोषघोपवास है । साधारणत चारों प्रकारके आहारका त्याग करना उपवास है, पर सभी इन्द्रियो विषयभोगोसे निवृत्त रहना हो यथार्थमे उपवास है । प्रोषधोपवाससे ध्यान, स्वाध्याय, ग्रह्मचर्यं ओर तत्त्वचिन्तन आदिकी सिद्धि होती है । प्रोषघोपवासके निम्नलिखित अतिचार हैं
१ प्रत्यवेक्षिताप्रमाजितोत्सगं - जीव-जन्तुको देखे विना और कोमल उपकरण द्वारा बिना प्रमाजंनके ही मल मूत्र और श्लेष्मका त्याग करना ।
२ अप्रत्यवेक्षिताप्रमाजितादान -- विना देखे और बिना प्रमार्जन किये हो पूजाके उपकरण आदिको ग्रहण करना ।
३. अप्रत्यवेक्षिताप्रमाजित संस्तरोपक्रमण - बिना देखे और बिना प्रमार्जन किये ही भूमिपर चटाई आदि बिछाना ।
४ अनादर - प्रोपधोपवास करनेमें उत्साह न दिखलाना ।
५ स्मृत्यनुपस्थान - प्राषधोपवास करने के समय चित्तका चञ्चल रहना । भोगोपभोगपरिमाण
आहार-पान, गन्ध-माला आदिको भोग कहते हैं । जो वस्तु एकवार भोगने योग्य है, वह भोग है और जिन वस्तुओको पुन - पुन भोगा जा सके वे उपभोग हैं । इन भोग और उपभोगको वस्तुओका कुछ समयके लिये अथवा जीवन पर्यन्तके लिए परिमाण करना भोगोपभोगपरिमाणव्रत है । इस व्रतके पालन
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना ५२३